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लें, कोई लूट न जाय, कोई डाका डकैती न कर जाय इसका ध्यान पहले रखना चाहिए? कोई भी व्यक्ती स्पष्ट उत्तर देगा कि.. किसी भी परिस्थिति में सर्वप्रथम-चोर-गुंडे-डाकु सबका विचार करके उससे पूंजी बचानी चाहिए। बचेगी तो ही आगे व्यापार-उद्योग में लगाकर वह आगे बढ सकेगा।
ठीक इसी तरह आत्मा का नुकसान-अहित करनेवाले तत्त्वों को पहले पहचानना ही चाहिए। जिनमें-पाप है, कर्म है, अधर्म है। मिथ्यात्वादि है। ये सब आत्मा का अहित-नुकसान करनेवाले तत्त्व हैं अतः इनको सबसे पहले पहचानना ही चाहिए । कल हम धर्माराधनादि करेंगे तब करेंगे, लेकिन आज वर्तमान में जो पापकर्म कर रहे हैं उनको तो पहले आज ही समझ लें... पहचान लें... ताकि छोड सकें । क्योंकि आज के किये हुए भयंकर पापकर्म भावि में इतना भयंकर रूप लेकर उदय में आएंगे कि शायद कल उन कर्मों के उदय में आने के कारण कैसी परिस्थिति होगी इसका कोई ठिकाना नहीं है। ऐसे अशुभ कर्मों के उदय में धर्म होना असंभव हो जाएगा। इसलिए आज पहले धर्म करने के जाय पाप्त कर्मों की प्रवृत्ति सर्वथा छोड ही ।देना ज्यादा हितावह है।
सबसे बड़ा धर्म क्या?___थोडी द्विधा यहाँ हो रही है । आप भी विचार करना कि... पाप कर्म छोडना और धर्म की प्रवृत्ति करना इन दोनों में से सबसे बड़ा काम कौनसा है ? अतः कौन सा पहले करना चाहिए? पहले धर्म करना चाहिए? या पहले पापकर्म छोडने चाहिए ? ऊपर उन दोनों में पहले–पश्चात का जो क्रम का विचार किया है उसी तरह बडा-छोटा का महत्वपूर्ण-गौण का विचार करें । आखिर धर्म में भी क्या करना है ? पाप की अशुभ प्रवृत्ति छोडने का काम करना है। यदि हम धर्मानुष्ठान की प्रवृत्ति जो दर्शन-पूजा–सामायिक प्रतिक्रमण-माला-जाप–आयंबिल-उपवास-अट्ठाई आदि करना; तीर्थयात्रादि करना, व्याख्यान श्रवण करना आदि धर्म की अनेक प्रकार की प्रवृत्ति हैं उन में से क्या करना चाहिए?
__ यदि आप उपरोक्त सभी धर्म की करणी-आराधना-प्रवृत्ति करने जाते हैं लेकिन जो मूलभूत पाप कर्म है उन्हीं को नहीं छोडते हो तो इन अशुभ पापों की प्रवृत्ति के कारण कल आपका धर्म भी बदनाम होगा। और आपका मन भी धर्म में नहीं लगेगा। चित्त
"मिथ्यात्व" - प्रथम गुणस्थान
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