SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रेरक की मनोभावना (एडवोकेट भंवरलाल बैद का निवेदन) पूज्य पिताजी स्व. मोतीलालजी बैद राजस्थान में चूरु जिल्ला के राजलदेसर गांव के उच्चतम व संपन्न तेरापंथी जैन परिवार के सदस्य थे । चूरु के ही संपन्न घराने के स्व. गुरमुखरामजी कोठारी की संस्कारी सुपुत्री एवं स्व. तोलारामजी कोठारी की बहन स्व. पानी देवी के साथ उनका पाणिग्रहण हुआ था । पू. पिताजी एक कर्मठ कार्यकर्ता और कुशल व्यापारी थे । उनकी धार्मिक वृत्ति काफी ऊँची थी । लेकिन् आयुष्य काल अल्प था । अतः मात्र ३५ वर्ष की अल्पायु में स्वर्गवासी बन गए । पू. मातुश्री अच्छी समझदार एवं हिम्मतवाली थी। वैसे उन्हें " बिना पगडी का मोट्यार” कहते थे । उनका समस्त जीवन त्याग तपश्चर्यादि आध्यात्मिक विकास करने की साधना में ही बीता । संवत् २०१८ आषाढ वदि ६ के दिन हमें छोडकर चल बसी । विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि... पू. पिताजी, माताजी एवं स्व. तोलारामजी कोठारी विशेष उच्चकोटि के देव बने हैं । और वे अपनी आध्यात्मिक साधना में लीन हैं । मेरी धर्मपत्नी लाडदेवी सरल एवं शांत स्वभावी थी । उसकी भी त्याग, तपश्चर्या एवं आत्मसाधना में काफी अच्छी रस- रुचि थी । पापभीरु आत्मा थी । मेरे साथ ७३ वर्षों का साथ निभाकर दि. ३० अक्टुबर १९९३ के दिन सबको छोड़कर चली गई । ठीक इस निधन के डेढ साल बाद मेरे ज्येष्ठ पुत्र डुंगरमल बैद की धर्मपत्नी श्रीमति कानकंवर देवी का भी मात्र ५८ वर्ष की उम्र में दि २४ अप्रेल १९९४ को निधन हो गया । वह भी स्वर्ग सिधार गई । इसने भी अपने जीवन काल में त्याग - तपश्चर्या – स्वाध्याय आदि धर्माराधना में काफी अच्छी आराधना की थी । - मैं भी आज ८६ वर्ष का हो चुका हूँ। जीवन में वकालात के व्यवसाय में रहने के बावजूद भी ज्ञान–स्वाध्याय—-तप-त्यागादि करता रहा । गुणस्थान के विषय में मुझे पहले से काफी जिज्ञासा थी । आत्मा और कर्म के विषय में काफी रुचि थी। जैन धर्म के १४ गुणस्थान का विषय काफी ज्यादा सुंदर रुचिकर एवं महत्वपूर्ण लग रहा था। क्योंकि संसार से लेकर मोक्ष प्राप्ति तक की सारी प्रक्रिया इसमें समायी है । धर्मशास्त्रों का केन्द्रीभूत विषय भी यही है । गुणस्थान के विषय का साहित्य प्राप्त करने के लिए मैं सतत खोज करता रहा । लेकिन् सभी संप्रदायों में गुणस्थान विषयक साहित्य अल्पप्राय ही दिखाई
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy