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आ गया। वैसे ही निगोद से लेकर चलते-चलते भव-भ्रमण करते-करते जीव मनुष्य की अन्तिम गति में आ जाए तो समझिए अनन्त भव करके अन्तिम भव में आ चुका है। किसी भी अन्य प्रकार की गति एवं जन्म से जिस मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं थी उस मोक्ष की प्राप्ति मनुष्य जन्म से संभव है। इसीलिए मोक्ष का सीधा अर्थ है संसार की जन्म-मरण की अनादि अनन्त की भव-परंपरा का अन्त आना । तिर्यंच, देव और नरक की गति से मोक्ष की प्राप्ति सुलभ नहीं है क्योंकि उस प्राप्ति के अनुरूप ये गतियाँ नहीं है । अतः एक मात्र आधार मनुष्य की गति पर ही है। इसीलिए मनुष्य का जन्म संसार में अन्तिम जन्म हो सकता है, यदि बनाया जाय तो। यदि कोई भी जीव मनुष्य की श्रेष्ठ गति, सर्वोच्च प्रकार का जन्म पाकर भी न करने के पापों को करता ही जाय, भारी कर्म उपार्जन करता है तो फिर ८४ का चक्कर चलता ही रहेगा। कहीं भी जीव बच नहीं सकता है । मनुष्य का जन्म चरम कक्षा का अन्तिम था। लेकिन उपयोग करना नहीं आया और दुरुपयोग करके हाथ से गंवा दिया। फिर पतन शुरु हुआ।
पतन का प्रारंभ
___ एक तो बड़ी मुश्किल से जीव ऊपर चढा था। चढता-चढता अपना विकास करता करता जीव विकास की अन्तिम कक्षा तक मनुष्य जन्म तक आया था। लेकिन क्या करना? उसकी पाप कर्म करने की वृत्ति जोर करती रही...परिणाम स्वरूप भयंकर प्रकार के पाप कर्म करके जीव मनुष्य की गति से गिरकर फिर अन्य जन्मों में अन्य गति में जाकर जैसे सीढी पर चढते हए यदि हम गिर जाय ते पता नहीं कहाँ तक गिरेंगे? किस तरह गिरेंगे? कहाँ तक गिरते ही जाएंगे? कोई ठिकाना नहीं है । हो सकता है जिस क्रम से चढे हैं उसी क्रम से भी गिर सकते हैं । और ऐसा भी पतन हो सकता है। सीधे २-३, और ४ इन्द्रियवाले जन्मों में भी जाकर गिर सकते हैं । अरे ! इतना ही नहीं मनुष्य से गिर कर सीधे एकेन्द्रिय की जाति में भी जीव चला जाता है। जैसे देवगति से देवता के जीव भी मरकर स्वकृत कर्मानुसार ... सीधे एकेन्द्रिय के भव में आकर जन्म लेते हैं वैसे ही मनुष्य की ऊँचाई से गिरकर सीधे एकेन्द्रिय में भी आ सकते हैं। एकेन्द्रिय की जाति में भी ६ भेद हैं । उनमें भी गिरता-गिरता जीव वायु-हवा की जाति में जाता है । वायुकाय से अग्नि काय में जाकर भी जन्म लेता है। फिर वहाँ से पृथ्वीकाय में जाकर पत्थर-मिट्टी-धातु के रूप में भी वापिस जन्म लेना पडेगा । और पृथ्वीकाय के बाद और नीचे पानी-अप्काय में जाकर गिरता है । फिर वहाँ से वनस्पति काय में जाकर गिरता है।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा