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२२. भ. नेमिनाथजी ५३६
३० उपवास गिरनारजीतीर्थ २३. भ. पार्श्वनाथजी ३३
३० उपवास सम्मेदशिखरजीतीर्थ २४. भ. महावीर एकाकी दो उपवास पावापुरीजीतीर्थ
इस तरह २४ तीर्थंकर भगवंतों के साथ इतनी संख्या में आत्माएं निर्वाण पाकर मोक्ष में गयी हैं।
इस तरह विचार करिए । पनवणाजी आगम शास्त्र में दर्शाए नियमानुसार इतनी आत्माएं मोक्ष में गई । अतः उसके सामने इतने जीव निगोद में से निकलकर बाहर आए।
सिद्ध माता के स्थान पर है- .
संसार के व्यवहार में जैसे हमको एक माता जन्म देती है तब जाकर एक जीव जो साडे नौं महीने की गर्भावास की पीडा-वेदनां भुगतता था उसको जन्म से छुटकारा प्राप्त होता है । वह इतने से जन्म लेने के छोटे कारण मात्र से जननी जन्मदाता माता का उपकार जीवनभर मानता है । माता को पूज्य स्थान पर उपकारी मानता है । ठीक वैसे ही निगोद का गोला गर्भ समान है । साडे नौं महीने के गर्भकाल के समान निगोद में अनन्तकाल की दुःखद वेदना है। उसमें से जीव को जन्म देने समान बाहर निकालने वाला मोक्षगामी निर्वाण पानेवाला जीव है । इसलिए निगोद में से जीव को बाहर निकालनेरूप जन्म देनेवाले सिद्ध भगवान है । वे सिद्ध मातातुल्य है । इसलिए नवकार में “नमो सिद्धाणं" पद मंत्रात्मक नमस्कारवाची पद है । नमो सिद्धाणं इसमें बहुवचन है । क्योंकि आज दिन तक अनन्त काल के संसार में अनन्त जीव मोक्ष में गए हैं । अतः अनन्त जीव निगोद से बाहर भी निकले हैं। ऐसे अनन्त उपकारी सिद्ध भगवंतों का जिनका अनन्तगुना उपकार हैं उनको कैसे भूला जाय । उनका तो अनन्तबार इस मंत्रपद से स्मरण करना चाहिए। उन्हें अनन्त बार नमस्कार करना ही चाहिए।
यदि कोई मोक्ष में गए ही नहीं होते तो कोई भी जीव निगोद में से बाहर निकला ही न होता । तो संसार क्या होता? अतः अनादि अनन्त इस प्रवाहमय संसार में अनन्त जीव हैं । अनन्त आज दिन तक मोक्ष में गए। और अनन्त जीव निगोद में से बाहर निकल कर संसार चक्र के व्यवहार में आए। यही क्रम रहा है और आगे भी यहीं क्रम चलता ही रहेगा। अतः हमारे जैसे जीवों को आज विचार करना चाहिए कि... हमें भी यथाशीघ्र निर्वाण पाकर मोक्ष में जाना ही चाहिए। हम जब तक मोक्ष में नहीं जाएंगे तब तक मेरे एक के कारण एक जीव निगोद के गोले में रुका रहेगा। पडा रहेगा। वह बिचारा बाहर
संसार
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