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मान्यता, एवं सिद्धान्त की धारा हिन्दु धर्म की विचारधारा से सर्वथा विपरीत ही है । दोनों में पूर्व–पश्चिम का या आसमान जमीन का अन्तर है तो फिर शाखा मानने का सवाल ही कहाँ उत्पन्न होता है ? हिन्दु धर्म में से जैन धर्म निकला है यह कहना भी नितान्त तर्कयुक्तिरहित है । अतः जैनदर्शन हिन्दु धर्म की शाखा नहीं है। न ही इसमें से निकला
है
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यह एक स्वतंत्र मौलिक दर्शन है। स्वतंत्र धर्म है ।
अतः परमेश्वर–परमात्मा का शुद्ध स्वरूप समझने के लिए यह सुदीर्घ विस्तृत चर्चा तर्कयुक्तिपूर्वक की है । जिससे संसार एवं स्वयं के सुख-दुःख के कर्ता जगत्कर्ता ईश्वर है या नहीं यह पता चल सके। अब एक पक्ष को विविध यांसों में देख लिया कि ईश्वर इस संसार की विचित्रता, विषमता एवं विविधता तथा जीवों के सुख-दुःख का तथा कर्मफल का कारण नहीं है । यह स्पष्ट निश्चय एवं निर्णय होने के बाद अन्य कारण कालादि हो सकते हैं या नहीं इसके बारे में फिर आगे सोचेंगे। एक पक्ष में निर्णय हुआ अन्य निर्णय आगे देखेंगे ।
इति शुभं भवतु ॥
संसार की विचित्रता के कारण की शोध
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