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________________ हैं। अन्यथा बद्ध-महावीरादि कई सर्वज्ञों को सष्टिकर्ता स्वीकारना पड़ेगा, तो फिर ऐसे सर्वज्ञ कितने हुए हैं ?- उत्तर में संख्या अनन्त की है। तो क्या आप अनन्त सर्वज्ञों को सृष्टिकर्ता मानेंगे? तो फिर आपका एकत्व पक्ष चला जाएंगा। अच्छा, यदि हमारी तरह संसार को अनादि-अनन्त और जड़-चेतन, संयोग-वियोगात्मक या जीव-कर्म संयोग-वियोगजन्य मान लो तो क्या तकलीफ है ? चूंकि अनादि संसार में जड़ और चेतन ये दो ही मूलभूत द्रव्य हैं । इन्हीं की सत्ता है। इन्हीं का अस्तित्व है । चेतन को ही जीव कहते हैं । और जड़ का एक अंश कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणु से अपने में खींचता है । उसे कर्म रूप में परिणत करता है । जैसे चुम्बक में चुम्बकीय शक्ति है । मूलभूत पड़ी ही है । चूंकि वस्तु अनन्त धर्मात्मक है । उसी तरह चेतन आत्मा में भी रागादि भाव पदार्थ निमित्तक हैं । अतः वह आकर्षित करता है । उससे कार्मण वर्गणा आत्मसंयोगी बनकर कर्म बनती है। जीव के साथ कर्म का संयोग-वियोग ही सृष्टि की वैचित्र्यता का सही कारण है ऐसा मानना उचित है। दूसरी तरफ आप यदि ईश्वर को सृष्टि के वैचित्र्य का कारण मानोगे तो भी आवश्यक उपकरणों के रूप में जीव और कर्म का अस्तित्व प्रथम स्वीकारना ही पड़ेगा। क्योंकि आवश्यक उपकरणों के अभाव में ईश्वर सृष्टि की रचना कैसे कर सकेगा? जैसे एक कुम्हार घडा बनाता है तो मिट्टी-पानी, अग्नि, दण्ड-चक्र आदि आवश्यक उपकरण उपस्थित हो तो ही बना सकता है । यदि ये उपकरण न हो तो कुम्हार घड़ा कैसे बनाए ? साधन के बिना बनाए किससे? एक रसोइया रसवती बनाने में काफी कुशल है । सारी जानकारी अच्छी है । परन्तु सामग्री के अभाव में अच्छी रसोई कैसे बना सकेगा? वैसे ही आपके कथनानुसार मान लिया कि ईश्वर सर्वज्ञ है । सृष्टिरचना एवं वैचित्र्यादि के निर्माण का पूरा ज्ञान ईश्वर को है । अतः वह सृष्टि निर्माण करने में समर्थ है। परन्तु हमारा यह पूछना है कि क्या समर्थ ईश्वर भी आवश्यक सामग्री के अभाव में भी सृष्टि निर्माण कर सकेगा? जो आवश्यक उपकरण चाहिए उसके बिना ईश्वर सृष्टि कैसे बना पाएगा? घड़ा बनाने के लिए जैसे मिट्टी, पानी आदि सामग्री की आवश्यकता है। रसोई बनाने के लिए अनाज-सब्जी-पानी-अग्नि आदि सामग्री की आवश्यकता है उसी तरह सृष्टि निर्माण करने के लिए ईश्वर को भी जीव-कर्मादि आवश्यक उपकरण या सामग्री की आवश्यकता पड़ेगी। जबकि जीव कर्मादि सामग्री के अभाव में ईश्वर सृष्टि रचना करे यह संभव नहीं है। यदि आप सामग्री के अभाव में सृष्टि मानते हो तो अनाज-पानी-अग्नि आदि सामग्री के अभाव में रसोई बनाकर बताइए, या मिट्टी-पानी आदि किसी भी सामग्री के बिना घड़ा १५० आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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