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जगत के अनन्त पदार्थ बने । परमाणुवाद पर सृष्टि का आधार रखकर भी परमाणु संयोजन में ईश्वरेच्छा का तत्त्व बीच में लाकर नैयायिकों ने वैज्ञानिकता सिद्ध नहीं की है। दूसरी तरफ अपने आप को महान तार्किक, तर्करसिक कहनेवाले एवं प्रत्यक्ष को भी अनुमान से सिद्ध करनेवाले तर्कविलासी तर्कजीवी नैयायिकों ने ईश्वरेच्छा को सिद्ध करने के लिए कोई तर्क नहीं दिये यही बडा आश्चर्य है। ईश्वर इच्छा क्यों है ? क्यों इच्छा तत्त्व परमाणुओं का संयोजन करे ? कैसे करे ? यहाँ कोई तर्क युक्ति नहीं है ।
यदि ईश्वर विश्वकर्मा है जो कुम्हार कुविन्द - कुलाल की तरह सृष्टि की रचना करता है तो सृष्टि की रचना में सहायक घटकद्रव्य जो पृथ्वी - पानी - अग्नि - वायु - आकाशादि की सत्ता यदि ईश्वर के पहले ही सिद्ध हो जाती है तो फिर ईश्वर ने क्या बनाया ? यदि आप ये कहें कि ईश्वर ने तो सिर्फ पृथ्वी-पानी आदि के संयोजन संमिश्रण ही किया है तो फिर यह कार्य तो जीव भी करता ही था । और ईश्वर के पहले ये पदार्थ थे तो ईश्वर को सृष्टिकर्ता क्यों कहें ? नगरकर्ता भवनकर्ता आदि ही कहना पडेगा, जैसा कि कुम्हार को घटकर्ता कहते हैं न कि मिट्टी-पानी का कर्ता । तन्तुवाय - कुलाल - कुविद को वस्त्र का कर्ता कहते हैं न कि रूई कपास का कर्ता । इस तरह ईश्वर का सृष्टिकर्तृत्व ठहर नहीं सकता ।
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सृष्टिकर्ता ईश्वर यदि सादि है तो क्या अपने आप उत्पन्न हो गया ? अच्छा मान भी लें । यदि सृष्टिकर्ता ईश्वर अपने आप उत्पन्न हो सकता है तो जगत् अपने आप क्यों नहीं उत्पन्न हो सकता ? जगत् को भी स्वयंभू मानने में क्या आपत्ति है ? जड़-चेतन पदार्थों के संयोग-वियोग और जड़ पदार्थों में भी घात - संघात - विघात की प्रक्रिया चलती ही है, जिससे गुणधर्मादि में परिवर्तन आते ही रहते हैं, तो इस तरह वहाँ बीच में ईश्वर को लाने की आवश्यकता ही नहीं है । यदि यह पूछा जाय कि ईश्वर स्वयंभू नहीं है और सादि है तथा उसकी उत्पत्ति में अन्य कारण हैं। यदि अन्य कारण मानते हैं तो उन कारणों का तथा कारण के घटक द्रव्यों का अस्तित्व ईश्वरास्तित्व के पहले स्वीकारना पड़ेगा । यदि यह स्वीकार करें तो ईश्वर की उत्पत्ति के पहले भी सृष्टि थी यह स्वीकार करना पड़ेगा ।
यदि आप यह कहो कि जगत्कर्ता की सत्ता सादि नहीं अनादि है तो उसी के साथ जगत् को भी अनादि मानना पड़ेगा । अनादि तत्त्व यदि सिद्ध होगा तो अनादि की तो उत्पत्ति नहीं होती । अनादि द्रव्य तो अनुत्पन्न होता है । जैसा कि आप ही कहते हैं कि आकाश अनादि द्रव्य है । आकाश पदार्थ ईश्वर के द्वारा बनाया नहीं गया है । अनादि यदि आकाश है और उसी की तरह समस्त जगत् अनादि मान लेंगे तो ईश्वर की निष्क्रियता सिद्ध हो जायगी । ईश्वर की निष्क्रियता सिद्ध हो यह भी ईश्वरवादी को इष्ट नहीं है । परन्तु
संसार की विचित्रता के कारण की शोध
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