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कोई धन लुटा रहा है तो कोई कौड़ी कोड़ी के लिए मुहताज है।
कोई फूल सुगन्धी है तो कोई सुगन्ध रहित है । किसी के यहाँ खाने के लिए बहुत है पर अफसोस कि खानेवाला कोई नहीं है और किसी के यहाँ खानेवाले बहत ज्यादा है तो खाने के लिए रोटी का टुकड़ा भी नहीं है। किसी के घर पहनने के लिए ढेर कपड़े हैं, एक साथ २-४ कपड़े पहनते हैं तो किसी के घर शरीरलज्जा ढांकने के लिए भी कपड़ा नहीं है। नंगे घूम रहे हैं। तो किसी के पास कफन के लिए भी नहीं हैं। यह संसार की कैसी विचित्रता है। संसार की ऐसी सैकड़ों विषमताएं हैं। और सच कहो तो विषमताओं से ही भरा पड़ा संसार मानों विचित्रताओं, विषमताओं तथा विविधताओं का ही बना हुआ है । इस संसार की चित्र विचित्र बातें भी कम नहीं हैं। किसी के एक भी संतान नहीं है तो किसी को एक साथ ३, ५, ६ सन्ताने होती हैं । कोई जुड़वा सिरवाले बालक हैं तो कोई जुड़वा पेटवाले बालक हैं । किसी किसी में सारा शरीर अच्छा सुन्दर है परन्तु अंगोपांग पूरे विकसे नहीं है। . ___ एक माँ अपने ८ महिने के बालक को कपड़े में लपेटे हुए लाई । बालक इतना सुन्दर
और मनमोहक था कि प्यार करने के लिए किसी का भी जी ललचा जाय । परन्तु कपड़ा हटाकर माँ ने बालक को दिखाया तब देखते देखते आँखें फटने लगी । अरे यह क्या? बांया हाथ कोनी तक ही बना था और दांया हाथ कलाई तक हीं बना था । उसी तरह बांया पैर घुटने तक ही बना था और दाहिना पैर एडी तक भी नहीं बना था । यह कैसा आश्चर्य ? इतना सुन्दर बालक होते हुए भी यह विचित्र अवस्था? विपाक सूत्र नामक ११ वें अंगसूत्र में दुःख विपाक के पहले अध्ययन में मृगापुत्र का जो वर्णन किया गया है वह रोम रोम खड़े कर दे ऐसा आश्चर्यकारी है ।
__ एक माँ अपने १४ महिने के बच्चे को लेकर आई और कहा महाराज ! डाक्टर ने कहा है कि यह मुश्किल से एक दिन भी नहीं जीएगा । सारे शरीर में कैंसर की गांठे भर गई हैं । मुँह से पानी भी नहीं उतरता है और पेशाब भी नहीं होता । मौत का इन्तजार करता हुआ वह सुन्दर-सुरूप बालक दिल में दया का मानों स्रोत बहा रहा है। पर हाय ! निःसहाय निरुपाय बालक ने दूसरे दिन दम तोड़ दिया। यह कैसी विचित्रता है !
पशु-पक्षियों की सृष्टि में दृष्टिपात करने पर दुनिया भर की विचित्रता विविधता दिखाई देती है । मूक मन से प्राणियों की यह विचित्रता संसार में देखते ही रहो... बस. .. देखने के सिवाय और कोई उपाय ही नहीं है । बेचारें ऊंट का शरीर कैसा है ? अठारह ही अंग सभी टेढे मेढे । हाथी का शरीर इतना बड़ा भीमकाय है कि बिचारा भाग भी न
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आध्यात्मिक विकास यात्रा