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________________ की भी आदि नहीं है । उसी तरह मोक्ष में अनन्त आत्माओं के बावजूद भी अनन्तानन्त आत्माएं इस संसार में सदा ही रहती हैं। संसार से सभी आत्माएं मोक्ष में नहीं चली गई हैं, अतः संसार का अन्त नहीं आया है । और अभवी जीव तो कदापि मोक्ष में जानेवाले ही नहीं है, अतः संसार का कभी भी अन्त आना संभव ही नहीं है । संसरणशील स्वभाववाला संसार अनन्तकाल तक सदा चलता ही रहेगा । अपना अन्त या संसार का अन्त ? साधक अपने बारे सोचे में सोचें यही लाभप्रद है। जबकि ऐसा संसार का स्वरूप है । समष्टि से तो यह संसार अनादि - अनन्त है ही । परन्तु किसी व्यक्ति की दृष्टि से इसका अन्त भी है। भगवान महावीर का संसार अनादि जरूर था, लेकिन अन्त हो गया। एक व्यक्तिविशेष का संसार सान्त भी है । अतः संसार का अन्त लाना है कि हमको हमारे अपने संसार का अन्त लाना है ? समस्त संसार का अन्त तो संभव भी नहीं है । आनेवाला भी नहीं है । परन्तु अपने एक के व्यक्तिगत संसार का अन्त लाना चाहें तो जरूर ला सकते हैं । भूतकाल में भगवान महावीर की आत्मा ने अपने संसार का अन्त लाया । वैसे ही चौबीसों तीर्थंकरों ने, सभी गणधर भगवंतों ने, उसी तरह कई आचार्य, उपाध्याय एवं साधु-साध्वीजी महाराजों ने भी अपने संसार का अन्त किया और मोक्ष में विराजमान हो गए । परन्तु हमारे जैसों का संसार तो आज भी चल ही रहा है । और मान भी लो हम जब संसार छोड़कर मोक्ष में चले जाएंगे तब कीडे-मकोड़े - कृमि - कीट-पतंग आदि अनन्त जीव इस संसार में आएंगे। उनका संसार चलता ही रहेगा। संसार का कभी अन्त नहीं होता । क 'अणाइ निह जोणि गहणंमि भीसणे इत्थ । भमिया भमिहंति चिरं जीवा जिणवयणमलहन्ता ॥ पू. शांतिसूरि महाराज जीवविचार प्रकारण में फरमाते हैं कि- अनादि काल से अनेक योनियों को ग्रहण करता हुआ यह जीव इस भीषण संसार के अन्दर भटकता रहा है और जिनेश्वर भगवान के वचन (आज्ञा) को न प्राप्त करनेवाला भविष्य में भी चिरकाल तक इस संसार में भटकता ही रहेगा । हम संसार को छोडें या संसार हमें छोडे ? एक युवक रास्ते पर इलेक्ट्रिक के खम्भे से लगा हुआ जोर से चिल्ला रहा थाबचाओ ... बचाओ ... छुड़ाओ ... छुड़ाओ । किसी सज्जन को यह सुनकर दया आई आध्यात्मिक विकास यात्रा १०६
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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