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की अनन्त जीव सृष्टि में अनन्त जीवों में रहनेवाला अनुगत द्रव्य वह एक ही है और सर्वत्र व्याप्त रहता है । वह विभु है।
परन्तु यह पक्ष उचित मानना असंभव है । क्योंकि सभी के शरीर भिन्न भिन्न हैं और प्रत्यक्ष देखने पर सबके सुख-दुःख भी भिन्न भिन्न दिखाई देते हैं। कोई सखी है तो कोई दुःखी है । कई सुखी हैं तो कई दुःखी हैं । यदि सबकी एक ही आत्मा होती तो सभी एक समान सुखी ही होने चाहिए थे। या सभी एक समान दुःखी ही होने चाहिए। सभी जीवों में अनुगत एक ही आत्मा मानने पर अनेक दोषों की आपत्ति आएगी। अतः सर्वज्ञ के सिद्धान्तानुसार कहते हैं कि- प्रतिक्षेत्रं भिन्न-अर्थात् प्रत्येक शरीर में स्वतंत्र अलग अलग आत्मा का अस्तित्व है। क्षेत्र यहाँ शरीर अर्थ में प्रयुक्त है। प्रत्येक शरीर में भिन्न-भिन्न अलग अलग एक एक आत्मा ही रहती है, उसे प्रत्येक कहते हैं। और साधारण वनस्पति काय में एक शरीर में अनन्त आत्माएँ भी एक साथ रहती हैं। "जेसिमणंतणं तणु एगा साहारणा ते उ॥" जिन अनन्त जीवों के लिए रहने का शरीर सिर्फ एक ही हो उसे साधारण वनस्पतिकाय कहते हैं । इससे यह सिद्ध होता है कि- एक शरीर में अनन्त जीवात्माएँ भी रहती हैं। उदा.आलु-प्याज-लसून-गाजर-मूला-शकरकंद आदि में एक साथ अनन्त जीवात्माएँ रहती हैं । अतः उनकी हिंसा से बचने के लिए शास्त्रकार महापुरुषों ने उन्हें अभक्ष्य बताया है । वर्ण्य गिना है।
७) पौद्गलिकादृष्टवांश्च-अदृष्ट–अर्थात् जो पुण्यपापादि हैं वे सभी पौद्गलिक हैं । जीवात्मा ने पुद्गल परमाणु की जो अष्ट महावर्गणाएँ हैं उनमें से कार्मण वर्गणा को ग्रहण किया है। आठों वर्गणाओं को ग्रहण करनेवाला तो जीवात्मा ही है । यदि जीवात्मा ही नहीं होती तो इन कार्मणादि आठों वर्गणाओं को कौन ग्रहण करता? और ग्रहण करके उनके अपने साथ परिणमन कौन करता? क्रियाकारक कर्ता तत्त्व आत्मा ही है । आत्मेतर पुद्गल पदार्थ में या... धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय आकाश आदि में तो क्रियाकारकता नहीं है । अतः कर्तृत्वशक्ती नहीं है । कर्तापन का अभाव है। अतः पुण्य-पापरूप जो अदृष्ट है जिनको शुभ कर्म और अशुभ कर्म ही कहा गया है उनका कर्ता चेतनात्मा ही है ।
८) अयम्- उपरोक्त सभी विशेषणों से स्पष्ट होता है- वह उस स्वरूपवाला प्रमाता जो है वही आत्मा है। क्योंकि इन सभी विशेषणों से युक्त चेतनात्मा ही द्योतित होता है । तद्भिन्न-अचेतन जड में ये कोई भी ... एक भी विशेषण नहीं घटेगा। अतः आत्मा इन सभी विशेषणों के संयुक्त स्वरूपवाला द्रव्य चेतनात्मा है ।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा