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दुनिया को मनुष्य ने सर्वस्व मान ली है। बस, इसके आगे इसके बाद और भी कुछ है इन विचारों को तिलांजली ही दे दी है । अतः उसका अज्ञान दूर हो और सत्यज्ञान वासित दिल और दिमाग बने... दृष्टि विशाल बने इसके लिए विश्व के विराट स्वरूप को यहाँ मात्र संक्षेप में प्रस्तुत किया है । आगे का वर्णन आगे की दूसरी पुस्तक में और करेंगे । ॥ इति शं भवतु सर्वस्य ॥ '
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आध्यात्मिक विकास यात्रा