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इस तरह काल सापेक्षिक तत्त्व है । काल के कारण व्यवस्था बैठाई जाती है । काल के कारण ही नया–पुराना कह सकते हैं । यह कपडा आज खरीदा है इसलिए नया है। यह गत वर्ष खरीदा था इसलिए पुराना हो गया है । इन वाक्यों में भी आज और गतवर्ष ये शब्द कालवाची शब्द हैं । अतः यह सारा व्यवहार काल तत्त्व के कारण हुआ। अब काल का स्वरूप देखें
तत्त्वार्थकार ने 'सोऽनन्तसमय'- यह काल अनन्त समय प्रमाण है । जिसका कभी अन्त संभव ही नहीं है ऐसी अनन्त की संख्या है । इस तरह काल की सूक्ष्मतम इकाई समय है। समय शब्द सिर्फ काल का पर्यायवाची शब्द ही है ऐसा नहीं है । परन्तु काल की सूक्ष्म इकाई को समय कहा गया है । ऐसे समय अनन्त बीत गए हैं । अनन्त में यहाँ पर भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल इस तरह ३ काल की विवक्षा हुई । वर्तमान क्षण के समय पर हम ध्यान दें तो स्पष्ट ख्याल आएगा कि आज दिन तक जो सब बीत गया है वह भूतकाल है । वर्तमान तो चल ही रहा है । और जो आगे काल आ रहा है उसे भविष्य काल कहते हैं। भूतकाल को अतीत कहा है, अर्थात् जो बीत चुका हो। और अभी तक जो आया नहीं है उसे अनागत कहते हैं । यही भविष्य काल है । और संप्रति जो चल रहा है वह वर्तमान काल है । इस तरह भूत-वर्तमान-भविष्य ये तीनों कालकृत व्यवस्था हैं । ____व्यवहार और निश्चय ये भी काल के २ भेद होते हैं । निश्चयकाल तो १ समय मात्र का ध्यान रखता है । जबकि व्यवहार काल के काफी भेद-प्रभेद होते हैं। .. व्यवहार काल की गणना
हमारे व्यवहार में... उपयोग में आनेवाले काल जिसकी हम गणना करके माप सकते हैं उसे व्यवहार काल कहा है । इसकी गणना इस प्रकार हैकाल की सूक्ष्मतम इकाई समय है । अविभाज्य सूक्ष्मकाल
= १ समय। ऐसे असंख्य समयों की १ आवलिका बनती है। ९ समय
= जघन्य अंतमुहूर्त, २५६ आवलिकाओं:
= १ क्षुल्लक भव संख्याती आवलिकाओं का १ उच्छवास + निश्वास १७ ॥ क्षुल्लक भव = १ श्वासोच्छ्वास
आध्यात्मिक विकास यात्रा