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+ स्वाति
पृथ्वी तल से ८९७ योजन ऊपर मंगल ग्रह है। मंगल से भी ३ योजन ऊपर अर्थात् पृथ्वीतल से ९०० योजन ऊपर शनिग्रह है । इस तरह पृथ्वीतल से ७९० योजन से शुरू होकर ९०० योजन तक कुल ११० योजन के बीच यह समस्त सूर्य-चन्द्रादि पाँचों ज्योतिष्क मण्डल के देवों की स्थिति है । जो सतत गतिशील हैं । योजन का माप बताते हुए कहा है कि- १६०० गाउ बराबर १ योजन होता है । २१२ द्वीप-समुद्रों में सूर्य-चन्द्रादि की संख्या-;
जैन खगोल शास्त्रों में सूर्य-चन्द्रादि की संख्या अनेक की बताई हैं । वर्तमान विज्ञान ने यद्यपि १ सूर्य-१ चन्द्र की बातें की है फिर सौरमण्डल में १ से ज्यादा सूर्य का भी उनका अनुमान है । अभी जिस २१/२
द्वीप-समुद्र रूप की विचारणा की है अश्विनी उतने मनुष्य क्षेत्र के ऊपरी तिर्छालोक
क्षेत्र में सूर्य-चन्द्रादि की काफी लम्बी श्रेणी है । जंबूद्वीप में-जैन शास्त्रों ने २ सूर्य-२ चन्द्र बताए हैं। इसके
आगे लवण समुद्र जो २ लाख योजन के विस्तार वाला है उसके ऊपरी आकाश क्षेत्र में ४ सूर्य और ४ चन्द्र हैं । धातकी खण्ड में १२ सूर्य और १२ चन्द्र हैं । कालोदधि-समुद्र के ऊपरी आकाश क्षेत्र में २४ सूर्य और २४ चन्द्र हैं । आकाशी क्षेत्र में ७२ सूर्य और ७२ चन्द्र हैं । इस तरह मनुष्य क्षेत्रवर्ती ऊपरी तिर्जालोकगत आकाश क्षेत्र में निरंतर गतिशील कुल १३२ सूर्य और १३२ चन्द्र हैं। यह संख्या मनुष्य क्षेत्र के २१/२ द्वीप-समुद्रों पर है। __इनके परिवार के विषय के बारे में बृहत् संग्रहणी आदि ग्रन्थों में इनकी संख्या बताते हए कहा है कि-१ चन्द्र के परिवार में-८८ ग्रह हैं, २८ नक्षत्र हैं, ६६९७५ कोटाकोटी तारामण्डल है। जंबूद्वीप में २ चन्द्र होने के कारण दोनों के परिवार की संख्या निकालनी हो तो इसकी दुगुनी होती है। इसी तरह शास्त्रों में सूर्य-चन्द्रादि के विमानों की लम्बाई-चौडाई आदि के परिमाण प्रमाण का भी माप बताया गया है । चन्द्र के विमान
+ मूल
भरणी
जगत् का स्वरूप
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