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नाणं च दंसणं चैव चरितं च तवो तहा । एयमग्गमणुपत्ता, जीवा गच्छंति सुग्गई ||
(उत्तरा - ३ )
ज्ञान-दर्शन- चारित्र, तप का सम्यग् मार्ग प्राप्त करके जीव मोक्ष रूपी सद्गति प्राप्त करता है ।
सबसे बड़ा लाभ यह है कि उस
ऐसा सम्यक्त्व प्रथम बार प्राप्त होते ही जीब का मोक्ष उसी समय निश्चित हो जाता है । ऐसा निश्चित हो जाता है कि यह जीव अवश्य ही मोक्ष प्राप्त करेगा । इसमें कोई सन्देह नहीं; भले ही काल का अन्तर हो । इसलिए सम्यक्त्व और मोक्ष मार्ग के बीच अविनाभाव (परस्पर- पूरक ) सम्बन्ध जोड़कर यह कह सकते हैं कि जो-जो सम्यक्त्व पाएगा, वह मोक्ष में अवश्य जावेगा, तथा जो मोक्ष में जावेगा वह अवश्यमेव सम्यक्त्व प्राप्त किया हुआ होगा । यह सम्बन्ध ठीक वैसा ही है, जैसे दिन होगा तो सूर्य होगा ही, व सूर्य है तो वहां दिन अवश्यमेव होगा । इस कथन को हम इस रूप में कह सकते हैं कि दोनों एक दूसरे के साथ ही होते हैं ।
अतः सूर्य होने पर दिन और दिन होने पर सूर्य निश्चित ही होगा । ठीक इसी तरह सम्यक्त्वी को मोक्ष अवश्य होगा । और जिसे मोक्ष होगा वह सम्यक्त्वी निश्चित होगा । अतः सम्यक्त्व मोक्ष प्राप्ति का लाइसेंस या सर्टीफिकेट (प्रमाण) है ।
अब रहा प्रश्न बीच में सिर्फ काल (समय) का । सम्यक्त्व पाने के कितने समय बाद जीव मोक्ष पाएगा ? इस प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि
अन्तोमुहुत्तमित्तं पि फासियं हुज्ज जेहिं सम्मत्तं । तेसिं अवड्ढ पुग्गल परियट्टो चेव संसारो ॥ [नवतत्त्व - ५३ ]
ऐसा सम्यक्त्व अन्तर्मुहूर्त (दो घड़ी = ४८ स्पर्श या प्राप्त हुआ हो, वह जीव अवश्य ही काल में मोक्ष प्राप्त करता है; अर्थात सम्यक्त्व प्राप्ति के बाद अर्धपुद्गल -
मिनिट) मात्र काल भी जिसे अर्धपुद्गल परावर्त परिमित
कर्म की गति न्यारी
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