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३. तीसरे प्रकार की स्त्री जो शादी के पूर्व कन्यावस्था में ही संसार से विरक्त-वैरागी होकर दीक्षा लेकर साध्वी बन जाती है, उसमें पुत्र को जन्म देने की योग्यता यद्यपि है, परन्तु दीक्षित साध्वी होने के कारण शादी-पति संयोग आदि सामग्रियां कभी भी प्राप्त हो ही नहीं सकती है । अतः पुत्र को जन्म देने की योग्यता होते हुए भी पुत्र को जन्म दे ही नहीं सकती है । ठीक ऐसा ही जाति भव्य या दुर्भव्य जोव होता है। भव्य की जाति का होने के कारण इसे जाति भव्त्र कहते हैं । इसमें यद्यपि मोक्ष प्राप्ति को योग्यता जरूर पड़ी है, परन्तु मोक्ष प्राप्ति योग्य साधनसामग्रियां कभी भी नहीं प्राप्त होती हैं, अतः योग्यता होते हुए भी कभी भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता है। ' जैसे मंग में दो प्रकार होते हैं। एक मूंग जल्दी पक जाता है और दूसरा कोरड़े जाति का मूंग जिसे कितने ही घंटों तक चूल्हे पर पानी में चढ़ाया जाए फिर भी नहीं पकता है । अग्नि, ताप, पानी आदि साधन-सामग्रियां प्राप्त होने पर भी जो कभी भी नहीं परिपक्व होता है, उसी तरह भव्य और अभव्य जीव होते हैं । भव्य जीव पकने वाले मूग के जैसा होता है, और अभव्य जीव कोरडें मूंग के जैसा होता है।
भव्य-अभव्य जीव की परीक्षा___ शास्त्र में अभवी के विषय में कहा है कि वह सिद्धक्षेत्र-सिद्धाचल शत्रजर के दर्शन भी नहीं कर पाता है।
“पाप अभवि न नजरे देखे, हिंसक पण उद्धरिये ।"
-अर्थात् अभवी जीव सिद्धक्षेत्र-शत्रुजय को देखने, मानने एवं श्रद्धा क विषय बनाने के लिए तैयार नहीं होता है, यद्यपि यह भूमि सिद्ध-मुक्त होने के भूमि है । यहां से अनेक आत्माएं मुक्त होकर मोक्ष में गई है, और भविष्य में भी जाती रहेंगी। अभवी जोव मोक्ष एवं मोक्ष प्राप्ति के उपाय तथा मोक्षमार्ग आदि कुछ भी मानने एवं स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं है । अतः मोक्ष प्राप्ति की भूमि सिद्धक्षेत्र-सिद्धाचल को वह दृष्टिगोचर भी नहीं कर पाता है। इसका अधिकारी शास्त्रकारों ने भव्य जीव को ही बतया है। अतः सिद्धक्षेत्र-सिद्धाचल की यात्रा एवं दर्शनादि से भव्यपने या भवी की मुहर लगती है। अतः भवी जीव ही सिद्धक्षेत्रसिद्धाचल की यात्रा एवं दर्शनादि कर पाता है।
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कर्म की गति न्यारी