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________________ भी, यदि उनका सापेक्ष रूप से विचार न करते हुए एकान्त एक नय को पकड़कर ही चलता है, तो वह भी आभिनिवेशिक मिथ्यात्वी कहलाता है। यह भी अच्छा नहीं है। अतः सभी नयों का समुदित सापेक्षज्ञान करके, उन्हें प्रमाणरूप से स्वीकारने में सम्यक्त्व है। ४. सांशयिक मिथ्यात्व इस नाम से ही अर्थ स्पष्ट है कि वह संशय प्रधान वृत्तिवाला है । शंकाशील जीवों को ऐसा सांशयिक मिथ्यात्व होता है। हर बात में शंका मुख्य रूप से रहती है। सर्वज्ञ-केवलज्ञानी भगवान के वताए हुए जीव-अजीव, लोक-परलोक, स्वर्ग-नरक, पुण्य-पाप, मोक्षादि तत्त्व वास्तव में होंगे भी सही या नहीं ? क्या मालुम नहीं भी होंगे ? फिर भी सर्वज्ञ भगवान ने लोगों को नरकादिक का भय दिखाकर सुधारने के लिए बता दिये होंगे। शंका की आदत पड़ने के कारण वह यहां तक कुतर्क करने लग जाता है कि महावीरस्वामी भी हुए थे या नहीं ? इस बात में क्या प्रमाण है ? संभव है शायद मुनि महाराजों ने लोगों को नीति-रीति समझाने के लिए कपोल कल्पित रूप से महावीर स्वामी का मनघडंत एक रूपक चरित्र खड़ा कर दिया होगा ? एक युवक ने आकर ऐसा प्रश्न मुझे पूछा । मैंने सोचा यह सांशयिक मिथ्यात्वी जीव है । हर बातों में शंका-संशय रखता है । शंका के कुतर्क खड़े करता रहता है । मैंने ईट का जवाब पत्थर देने की युक्ति से कुतर्क के सामने दूसरा कुतर्क फैककर ही दिया। अरे ! सुन, ये तेरे पिता हैं इसका तेरे पास क्या प्रमाण है ? किस प्रमाण या प्रूफ से तू यह कहता है कि यह मेरे पिता है ? युवक-महाराज ! मेरी मम्मी ने मुझे बताया है कि ये तेरे पिता हैं । ___ मैंने कहा--इसे कैसे सत्य मानें ? तेरी मम्मी झूठ नहीं बोलती है इसका क्या प्रमाण है ? तेरे पास पक्का ठोस प्रत्यक्ष प्रमाण क्या है ? दूसरों के कहने पर तू यह मानता है । इसमें हम कैसे विश्वास रखें ? और यदि मम्मी या पापा के कहने पर तू यह मानने या स्वीकार करने को तैयार है, तो परम्परा से चली आती हई गुरु-शिष्यों की वंशपरम्परा से महाराज ये कहें कि---"महावीर स्वामी ऐसे थे, उस समय हुए थे, उन्होंने यह कहा था” इत्यादि मानने या स्वीकार करने में तुझे क्या आपत्ति है ? इस तरह युवक कान पकड़कर बात स्वीकार करके गया । कर्म की गति न्यारी
SR No.002481
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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