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आत्मा का काम है । आत्मा ही ज्ञानवान चेतन व्य है, और इद्रिया जड़ है । जड़ ज्ञानवान नहीं होता है । आत्मा इन्द्रियों की सहायता से ज्ञेय पदार्थों का ज्ञान करती है, वैसे हो दर्शन भी करती है । अतः ज्ञान-दर्शन करना यह इन्द्रियों का नहीं, अपितु आत्मा का काम है । ज्ञाता-द्रष्टागुणवान् आत्मा है न कि इन्द्रियां ।
__ इन्द्रियां उसमें डाकिए की तरह सहायक बनती है । वे पदार्थ के वर्ण, गंध आदि को दिखा देगी । परन्तु आगे ज्ञान आत्मा ही करेगी। उदाहरण के लिए समझिए कि - आंख ने एक व्यक्ति को देखकर उसके रूप-रंगादि को आत्मा तक पहुँचाया । परन्तु वह पुत्र है, या पिता है चाचा है या मामा इत्यादि विशेष भेद ज्ञान आत्मा ही करेगी । आंख से एक वृक्ष देखा । वृक्ष के फल, फूल पत्ते आदि रूप-रंग आंख ने आत्मा तक पहुँचाने का काम किया । परन्तु यह वृक्ष किसका है ? आम का. या चीकू का ? नींबू का है या सन्तरे का ? यह भेद ज्ञान एवं निर्णय आत्मा ही करेगी। वैसे ही आत्मा तक शब्द-ध्वनि पहुँचाने का काम कर्णेन्द्रिय करती है, परन्तु सुनकर हर्ष-शोकादि का निर्णय आत्मा ही करती है। उसी तरह ध्राणेनि य गंध, रसनेन्द्रिय खट्टा-मीठादि रस, स्पर्शेन्द्रिय ठण्डा-गरमादि स्पर्श आत्मा तक पहुँचाने का काम करती है, और विशेष निर्णय आत्मा ही करती है। इस प्रकार पांच इन्द्रियां २३ प्रकार के विषय आत्मा तक पहुँचाती है । और आत्मा उनका ज्ञान-दर्शनादि करती है।
क्रम.
इन्द्रियां
स्थान
विषय भेद
ज्ञान-दर्शनादि
स्पर्शेन्द्रिय
चमड़ी
स्पर्श
रसनेन्द्रिय
जीभ
रस
घ्राणेन्द्रिय
नाक
ठण्डा-गरमादि खट्टे-मीठे आदि ___ सुगंध-दुर्गधादि लाल, नीले आदि जड़-चेतनादि की
आंख
वर्ण
चक्षुरेन्द्रिय कर्णेन्द्रिय - कान
ध्वनि
२३
कर्म की गति न्यारी
११