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________________ लेकिन जाति एकेन्द्रिय की है । एकेन्द्रिय दोइन्द्रिय, ते इन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय..ये पांचों इन्द्रियवाले जीव तिर्यंच गति में गिने जाते हैं। अब आप सोचिए देव गति का पंचेन्द्रिय देव गिर कर एकेन्द्रिय पर्याय में हीरे-मोती सोने-चांदी में जाकर जन्म लेता है तो यह कितना भारी पतन हुआ ? कितने ऊपर से कितना नीचे गिरा ? क्या इतना नीचे गिरकर वापिस इतना ऊपर चढ़कर देव बन सकेगा? नहीं सम्भव नहीं है । ऊपर से नीचे गिरना प्रासान है परन्तु नीचे से ऊपर चढ़ना आसान नहीं है। पंचेन्द्रिय पर्याय से सीधा गिरकर एकेन्द्रिय में जीव गया, परन्तु एकेन्द्रिय पर्याय से सीधे पंचेन्द्रिय पर्याय में जाना बड़ा मुश्किल है। इस तरह देवगति के देवता का एकेन्द्रिय पर्याय में, पृथ्वीकाय में, हीरे, सोने-चांदी आदि में जाकर जन्म लेना, कितनी भारी सजा है ? देव गति से सीधे नरक में नहीं जाते देवगति भी संसार में ही गिनी जाती है। मानलो कि देव गति का कोई देव बहुत ज्यादा पाप करता है तो वह मर कर क्या नरक में जाएगा ? नहीं ! जैन शास्त्रों में ऐसे शाश्वत नियम बताए गये हैं कि (१) देव गति से मर कर सीधा कोई भी देवता का जीव कभी भी नरक गति में नहीं जाता। हां ! जन्म तियंच या मनुष्य गति में करके फिर वहाँ से नरक में जा सकता है। परन्तु सीधा देव मर कर नारकी नहीं बनता । (२) उसी तरह देव गति का देव मर कर तुरन्त पुनः देव नहीं बनता, पुनः देव गति में जन्म नहीं लेता। एक जन्म मनुष्य या तिर्यंच की गति में करके वहां से वापिस देव गति में जा सकता है। यह शाश्वत नियम है। अतः इसमे यह सिद्ध हुआ कि देव गति से मर कर च्युत होकर देव सिर्फ मनुष्य और तिर्यंच की दो ही गतियों में जा सकता है । अन्य दो गतियां देव के लिए बन्द है। नारकी जीव के नियम ठीक वैसे ही दोनों नियम नरक गति के नारकी जीव के लिए हैं । एक तो यह कि नरक गति का नारकी जीव मृत्यु के बाद सीधा देव गति में नहीं जा सकता। चूंकि नरक गति में पुण्योपार्जन करने का कोई ऐसा साधन नहीं है कि नारकी जीव उस पुण्य से सीधा स्वर्ग में जा सके। नरक गति में नारकी जीव चाहे जो भी कुछ करे, कितनी भी वेदना सहन करे लेकिन वह देव गति उपार्जन नहीं करता। (२) उसी तरह से दूसरा शाश्वत नियम यह भी है कि नरक गति का कर्म की गति न्यारी
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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