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वालों की प्रतिशत संख्या कितनी बड़ी है ? शायद ९९% होगी । परन्तु भव रोग से पीड़ित संसार का संसारी जीव इसे समझने के लिए प्रयत्न करने वाले, इसके कारण की शोध करने वाले या, चिकित्सा कराने के लिए सज्ज हुए शायद २-५ या १०% भी मिलने मुश्किल है ।
भव रोग के त्राता प्रभु से प्रार्थना
भवरोगातं जन्तुनामगदंकार दर्शनः । निःश्र ेयस श्री रमणः श्रेयांसः श्रयसेस्तु वः ॥
त्रिशष्ठी शलाका पुरुष चरित्र में चौबीसों भगवान की स्तुति करते हुए सलार्हतु स्रोत में कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य महाराज श्रेयांसनाथ भगवान की इस स्तुति में कहते हैं कि रोग ग्रस्त किसी रोगी को वैच के आगमन की सूचना मात्र कितना आश्वासन दिलाती है । जैसे कोई मरीज बिछाने पर पड़ा हुआ त्रस्त है । चिल्ला रहा हो और उसे सूचना दी जाय कि वैद्यराज आ रहे हैं। शायद यह सुनते हो आधी तो मानसिक शांति हो जाती है । वैद्य के दर्शन होते ही मरीज आधा शांत हो जाता है । उसी तरह भव रोग से पीड़ित मेरे जैसे रोगी के लिए हेयांसनाथ भगवान ! आपके दर्शन भी शान्त्वना देने वाले हैं। रोगी के लिए वैद्य की तरह आपके दर्शन मेरे लिए लाभदायि है । निःश्रेयस = मोक्ष में विलास करने वाले ऐसे श्री श्रेयांसनाथ भगवान हमारे श्रेय = कल्याण के लिए हों । ऐसी भावना व्यक्त की है | अतः जिनेश्वर परमात्मा हमारे भत्र रोग के महान् चिकित्सक है | उन्हीं से हमारा यह भाव रोग मिट सकता है ।
भव भीरू और पाप भीरू
संसार में सर्वत्र पात्रता देखी जाती है
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एक पिता अपनी कन्या की शादी उसी तरह एक पिता अपनी लाखों योग्यता देखता है, उसी तरह धर्म
के लिए भी सामने युवक की पात्रता देखता है की कमाई पुत्र को देने के पहले उसकी पात्रता के लिए धर्मो की पात्रता क्या हो सकती है । धर्म करने के लिए कौनसा जीव योग्यपात्र कहलाता है ? इसका उत्तर देते हुए महापुरुषों ने भव भीरू और पाप भीरू जीव अर्थात् जिसके मन में भव = संसार के लिए योग्य पात्र है । अब मेरी भव वह भव भीरू योग्य पात्र है । मानों ज्वर उतारने के लिए डाक्टर ने सूई बढ़ता ही गया । ऐसा ही दो-तीन
को ही धर्म के लिए योग्य पात्र ठहराया हैं । प्रति भय हो ऐसा भव भीरू धर्मी कहलाने के संख्या बढ़ न जाय इसके लिए जो जागरूक है कि एक मरीज डाक्टर की दवाई ले रहा है ! लगाई। फिर भी यदि ज्वर कम होने की अपेक्षा
कर्म की गति न्यारी
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