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________________ समता से समाधि में मरने वाले विरले है । मरनेवाला महान है । मारनेवाला अधम है । अन्त में यही हुआ दस जन्मों तक समता शांति रखने वाला छोटा भाई मरूभूति दसवें जन्म में भगवान पार्श्वनाथ बनकर मोक्ष में गए। जबकि बड़ा भाई कमठ आज भी संसार की घटमाल में भटक रहा है । न मालुम आगे कितने भवों तक भटकता ही रहेगा । सगे भाईयों के बीच ऐसा भयंकर संसार चलता है तो फिर अन्यों में तो कहा ही क्या जाय ? जाति वैमनस्य का रूप तो और भी भयंकर है । एक जज तो एक भिखारी 1 भी वहां से पसार मेरे साथ बंगले में बात सगे दो भाई की है । छोटा भाई तो हाईकोर्ट का जज है और बड़ा भाई रस्ते पर भिख मांगता हुआ भिखारी है । योगानुयोग रास्ते में भिखारी हमारे पास आया कुछ मांगने की दृष्टि से । और उसी समय जुज साहब हो रहे थे कि वे भी रूके । भाई को कहा चल गाड़ी में बैठ जा । ही रह जा । क्यों इस तरह भिख मांगता है ? दुनिया देखती है । पड़ता है | बहुत कुछ कहा लेकिन भाग्य कहां घसीट ले जाते हैं ? कैसा विचित्र संसार दो भाईयों में भी समानता नहीं है । बड़ी भारी विषमता है । विचित्रता है । एक मां के चार बेटे भी समान स्वभाव के नहीं है । कोई पूर्व दिशा की बात करता है तो दूसरा पश्चिम की । कोई क्रोध की आग से घर को जलाता है तो कोई लोभ - मुझे शरमिंदा होना वृत्ति से घर को लूटता है । कोई मान अभिमान से कोई मायावि वृत्ति से कपट की जाल रचता है । देता है । इतना ही नहीं युगल रूप में जन्मे हुए दो नहीं होती है । क्या कारण है ? घर की इज्जत बिगाड़ता है । तो संसार सर्वत्र विचित्र सा दिखाई भाईयों के बीच में भी साम्यता भव रोग का भय भव अर्थात् संसार, भव अर्थात् जन्म-मरण, भव अर्थात् संसार की भव परम्परा । देह रोग का भान तो सबको होता है । परन्तु भव रोग का ज्ञान किसी विरल को ही होता होगा । आधि-व्याधि-उपाधि में कई प्रकार के रोग बताए गए हैं। शारीरिक रोग एवं मानसिक रोग तो प्रसिद्ध ही है । सभी इनसे अच्छी तरह सुपरिचित है । शरीर में होने वाले रोग शारीरिक रोग हैं । पागलपन आदि मानसिक रोग | उन्माद आदि कामासक्ति के रोग है । ये सभी साध्य - असाध्य दोनों कक्षा के हैं । कई रोग जो साध्य हैं वे जल्दी ठीक हो जाते हैं । लेकिन जीव लेकर ही जाने वाले असाध्य रोगों की सूचि भी आज कर्म की गति न्यारी छोटी नहीं है । शरीर तंत्र में होने ५५
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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