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इस संसार में अभी असंख्य भव और भटकना पडेगा । इन शब्दों ने इस आत्मा को भवभीरू-पापभीरू बना दिया । महापुरुषों ने धर्म करने योग्य व्यक्ति की योग्यता इन दो शब्दों से प्रकाशित की है । जिसमें भव भीरूता और पापभीरूता हो अर्थात् जो संसार में होने वाली जन्मसंख्या से डरनेवाला हो अब मुझे संसार में ज्यादा नहीं रहना है ऐसा भाव जागृत हो गया हो वह जीव धर्म के लिए पात्र कहलाता है। उसी तरह पाप से डरने वाला अर्थात् पाप से बचने वाला पाप भीरू जीव ही धर्म करने के लिए लायक है। पात्र है। धर्मी बनने के लिए ये दो भाव तो आवश्यक है। इस भाव से बड़े भाई ने एक तरफ पाप करने बन्द कर दिये और दूसरी तरफ पुराने किये हुए पापों का क्षय करने के लिए उग्र तपश्चर्या और धर्माराधना शुरू करदी ।
धर्मोपासना करते हुए हमारे सामने दो ही लक्ष्य बड़े रहने चाहिए । एक तो नए पाप नहीं करना । निष्पाप जीवन जीना। पाप से सर्वथा बचना ! और दूसरा . है आज दिन तक भूतकाल में किये हुए पापों का क्षय करना । इन्हीं दो लक्ष्यवाला धर्मी सच्चा आराधक कहलाएगा । श्री नमस्कार महामन्त्र में "सव्व पावप्पणासणो" का जो सातवां पद दिया है वह साध्य पद है । महामन्त्र जपते समय हमारा उद्देश्य क्या होना चाहिए ? उसके लिए कहा कि- सर्व पापों का नाश हो जाय ऐसी भावना रखनी चाहिए । उसी तरह यह पद फल का भी अर्थ दिखाता है। इन पांच परमेष्ठिओं को किए गए नमस्कार के फल के रूप में मेरे पाप कर्म नष्ट हो ऐसी भावना रखनी चाहिए । इस धारणा को छोड़कर दूसरी स्वार्थी सांसारिक धारणा नहीं रखनी चाहिए।
बड़े भाई ने पाप नाश की भावना से तीव्र धर्म साधना शुरू करदी । लेकिन छोटे भाई को सिर्फ ७ ही भव शेष है। इतनी छोटी संख्या सुनकर अभिमान आ गया। बस सिर्फ सात ही भव शेष हैं और वह भी अनन्तज्ञानी सर्वज्ञ का वचन है। अतः इसमें तो शंका ही नहीं है । और न ही संख्या कम ज्यादा होगी । निश्चित रूप से सात ही भव होंगे । सातवें भव में मै मोक्ष में निश्चित रूप से जाने ही वाला हैं । सात के आठ भव तो होने वाले ही नहीं है। फिर क्या है। अच्छा यदि आज मैं कितना भी धर्म करूं तो भी क्या फायदा ? आज इस जन्म में तो मोक्ष होने वाला ही नहीं है । ७ भवे तो होंगे ही होंगे। अतः आज से धर्म करके भी क्या करू ? इतना सब कुछ खाने-पीने के लिए मिला है। सुख-शांति-शौख-अमनचमन-भोग विलास सब कुछ मिला है यह छोड़कर भूखे रहकर तपश्चर्या आज से ही क्यों करूं ? सात के आठ भव तो होने वाले ही नहीं है और मोक्ष भी सातवें भव में ही होने वाला है तो फिर आज से धर्म क्यों करूं ? उसने दुनिया भर के पाप
कर्म की गति न्यारी