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उसे ही मिलेगा। चूकि हकदार वही है। परन्तु जो पुनः आया है उसे यह मौका नहीं मिलेगा ! किसी के सिद्ध बनने से छुटकारा पाने का मौका एक बार मिल चुका था । संसार की यात्रा का प्रवासी बन चुका था । तो फिर ऐसे पाप कर्म क्यों किये ? क्यों वापिस इसी निगोद में आया ? अतः अब पुनः वैसा मौका नहीं मिलेगा। यदि पुनः पुनः इन्ही वापिस आये हुए को ही किसी के सिद्ध बनने से बाहर निकलने का मौका दिया जाय तो जो अनादि-अनन्त काल से निगोद के गोले में पड़े हुए हैं ये फिर कैसे बाहर निकल पाएंगे ? उनका तो फिर नंबर ही नहीं लगेगा। वे तो बिचारे पड़े ही रहेंगे ! अतः किसी के मोक्ष में जाने से नियमित और निश्चय रूप से पहले के अव्यवहार राशी वाले निगोद जीव ही क्रमशः बाहर निकलेंगे। ऐसा शाश्वत नियम है । अतः संसार यात्रा से बाहर के व्यवहार में भटककर पुन: निगोद में आए हुए जीव स्वयं अकाम निर्जरा-अनिच्छा से भी कर्म क्षय करके, बाहर निकलने योग्य योग्यता प्राप्त करें। काफी प्रयत्न-पुरुषार्थ करके बाहर निकलें, यह उन्हें स्वयं को करना है । ऐसी व्यवस्था सर्वज्ञानियों ने देखकर बताई है ।
कितने चक्रों में कहां तक परिभ्रमण ? मानलो कि व्यवहार राशीबाला जीव पुनःस्व पुरुषार्थ विशेष से बाहर निकला । पुनः वह ऊपर चढ़ने के लिए उसी क्रम से उस प्रकार के एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय के भवों को करता हुआ आगे बढ़ा । फिर से तिर्यच गति में घोड़े-गधे, हाथी-ऊंट आदि के जन्म धारण करता हुआ मनुष्य गति में आया, देवगति में जाकर देवी-देवता बना । आखिर वह देवगति भी संसार चक्र की ही गति थी इसलिए स्वर्ग से भी मरकर पुनः पशु-पक्षी के जन्म में जाता है, या हीरे-मोती, सोने-चांदी में जाकर उत्पन्न होता है। फिर वही क्रम उसी तरह वापिस चढ़ो। इस तरह ८४ लक्ष जीव योनियों में जाता हुअा, चारों गति में पांचों जाति में-अर्थात् पांचों इन्द्रियों में भिन्न भिद्ध जन्म-मरण करता हुआ कितने चक्र पूरे कर चुका है ? इस प्रश्न के उत्तर में केवलज्ञानी भगवान भी यही शब्द कह सकते हैं कि--अनन्त चक्र कर चुका है यह जीव तथा काल की दृष्टि से अनंत पुद्गल परावर्त काल बिता चुका है । तैली के बैल की तरह घूमता ही जा रहा है । घड़ी के कांटे की तरह अविरत सतत गोल-गोल घूमता ही जा रहा है । इन अनन्त चक्रों वाले संसार चक्र का कहीं अन्त ही नहीं है । अन्त जीव को अपने जन्म-मरणों का लाना होगा। इस विषय में एक उपमा का दृष्टान्त है वह रूपक देखिए--
भूतकाल के भवों की गिनतीकिसी एक जीव ने सर्वज्ञ केवलज्ञानी भगवान से अपने खुद के भूतकाल के
कर्म की गति न्यारी
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