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राजलोक स्वरूप अनन्त ब्रह्माण्ड के समस्त संसार में से जब कोई जीवात्मा संसार से मुक्त होकर मोक्ष में जाती है, तब एक जीव निगोद से बाहर निकलता है । यह अपरिवर्तनशील शाश्वत नियम है । अतः जगत की व्यवस्था ही इस प्रकार की बैठी हुई है । संसार में निगोद एवं मोक्ष के जीवों के बीच में सन्तुलन ही इस प्रकार का Sarafस्थित है कि जब एक जीव पुरुषार्थवश आगे बढ़े... कर्म निर्जरा करते हुए आगे बढ़े... वह तीर्थंकर नामकर्म बांधकर तीर्थ कर बने ... धर्म तीर्थ की स्थापना करे. और उनके उपदेश से कोई जीव धर्मोपासना करके मोक्ष में जाय तब उसकी जगह एक जीव निगोद के गोले से निकलकर बाहर संसार के व्यवहार में आता है । इसी तरह दूसरा, तीसरा - चौथा संख्यातवां, असंख्यातवां तथा अनन्त जीव बाहर आते हैं । निगोद तो जीवों की खान है । वहां तो एक एक गोले में अनन्त - अनन्त जीव है और ऐसे असंख्य गोले हैं । अर्थात् निगोद तो कभी समाप्त होने वाली भी नहीं है । भले ही अनन्तानन्त काल भी बीत जाय । अतः एक बात तो यह सिद्ध हो गई कि मोक्ष में कितने जीव गए हैं ? अनन्त । निगोद से कितने जीव बाहर निकले हैं ? अनन्त । और संसार में कितने अभी भी परिभ्रमण कर रहे हैं ? अनन्त । ऐसा जरूरी नहीं है कि निगोद से बाहर निकले हुए सभी मोक्ष में चले गए हैं ? नहीं, निगोद से बाहर निकल कर मोक्ष में जाने के लिए भी अनन्त की यात्रा में प्रवास करना होता है । निगोद से बाहर निकला जरूर है परन्तु बाहरी संसार में ८४ लक्ष जीव योनियों में परिभ्रमण करता हुआ इसी चार गति के संसार चक्र में जीव अटक गया है । अतः निगोद में से निकले हुए सभी मोक्ष में नहीं गए है परन्तु जितने मोक्ष में गए हैं उतने जरूर निगोद से निकले है । यह वाक्य कहना युक्ति संगत सिद्ध होता है ।
अरिहंत सिद्धों का प्रदृश्य उपकार
इससे एक बात यह सिद्ध हो गई कि हम निगोद में नहीं है । संसार चक्र में परिभ्रमण करते हुए ८४ लक्ष जीव योनियों में से आज अन्तिम मनुष्य जन्म में आए है | अतः यह तो निश्चित हो गया कि निगोद से बाहर निकलने के लिए किसी न किसी सिद्धात्मा का उपकार अवश्य है । मेरे समय कोई न कोई तो मोक्ष में जरूर गया ही था तभी तो मैं निगोद से बाहर निकल सका । अन्यथा अभी तक भी पड़ा ही रहा होता । मानों कि मोक्ष ही नहीं होता ? या कोई मोक्ष में गया ही नहीं होता तो कोई निगोद से बाहर भी नहीं निकला होता । अतः प्रत्यक्ष नहीं परोक्ष रूप में ही सही मुझे और सभी को सिद्ध भगवन्तों का उपकार अवश्य ही स्वीकारना पड़ेगा । हां मेरे समय कौन सिद्ध बने थे ? मुझे नाम मालुम नहीं है । भले ही नाम मालुम
कर्म की गति न्यारी
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