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परन्तु गत जन्म की स्मृति नहीं है इस अपेक्षा से आज के इस जीवन का जन्म सामने रखें तो जन्म पहले है और मृत्यु बाद में है। एक भव के बारे में सोचने पर पहले जन्म और बाद में मृत्यु स्पष्ट होती है । परन्तु परम्परा देखने पर अनन्त की गहराई सामने दिखाई देती है । और अनन्त का अन्त नहीं दिखाई देता इसलिए अनादि पक्ष भी सामने आता है । अब सोचिए कि जन्म-मरण क्या है ? किसके आधार पर है ? हम पुनर्जन्म Rebirth शब्द का प्रयोग करते हैं । शब्द है पुनर्जन्म-पुनः जन्म अर्थात् फिर से जन्म । पुन: शब्द 'फिर से' के अर्थ में हैं और जन्म का तो अर्थ स्पष्ट ही है । फिर से जन्म धारण करना या लेना ! अब बताइए जन्म लेता कौन है ? किसका जन्म होता है ? शरीर का कि आत्मा का ? क्या शरीर कभी पुनः जन्म लेता है ? नहीं । संभव ही नहीं है । मृत्यु के बाद हम शरीर को तो अग्नि में जलाकर भस्म कर देते हैं। फिर शरीर के जन्म का प्रश्न ही कहां उठता है ? नहीं जलाने वाले भी कबर बनाकर गाड देते हैं । गाडा हुआ शरीर भी सड़-गलकर नष्ट हो जाता है । अब सोचिए कौन जन्म लेता है ? मृत्यु के समय अस्पताल में खड़े रहते हैं । जन्म तो किसी का नहीं देखा लेकिन मौत के प्रसंग पर तो खड़े रहे हैं । डॉक्टर कहता है बस अब तो २४ घण्टे भी नहीं निकालेगा। सम्बन्धी वर्ग सावधानी से खड़ा रहता है । अन्त में मौत के समय क्या व्यवहार करते हैं ? कैसी भाषा बोलते हैं ?-जीव गया । बस अब जीव जाने वाला है । बस जीव जाएगा । जीव गया की भाषा अक्सर सुनते हैं । शरीर गया यह कोई नहीं बोलता । चकि शरीर तो सामने पड़ा है। शरीर कहां उडकर जाने वाला है ? उडने वाले पक्षियों का शरीर भी यही पड़ा रहता है । यद्यपि अदृश्य-अरूपी गुणवाला जीव आंखों से दिखाई नहीं देता फिर भी
कर्म की गति न्यारी