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उसमें कड़वापन कितना गुना ज्यादा बढ़ जाएगा। उसे चारस्थानीय रस कहेंगे । ऐसे जीवों के कषाय तीव्रतम कक्षा के होगे। इस तरह आप देखिए कि नीम का वैसे भी कड़वापन का स्वभाव है और उपको उब लते ही जाएं क्वाथ की तरह अधिकअधिक उबालते ही जाय तो कड़वापन बहुत ज्यादा बढ़ता ही जाता है । ठीक इस उदाहरण की तरह आत्मा के कषाय की मात्रा जब बढ़ती ही जाती है तब वह मन्द से तीव्र, तीव्र से तीव्रतर और तीव्रतम प्रकार की होती है। जितना ज्यादा कषाय का रस बढ़ता जाएगा उतना कर्म बन्ध गाढ़ होता जाएगा। इस गाढ़ कर्म बन्ध के आधार पर की स्थिति भी दीर्घ होती जाएगी। यह बात अशुभ पाप कर्म के विषय की हुई । नीम का रस कटु होता है। पीने वाले का मुंह बिगाड़ देता है उसी तरह अशुभ पाप कर्म का रस (विपाकानुभव) जीव को फल देते समय कटु, कटुतर, कटुतम फल देता है । जो कि जीव को बहुत ही दुःखदायि लगती है ।
__नीम के रस का उदाहरण अशुभ पाप कर्म के लिए देखा वैसा ही शुभ पुण्य कर्म को समझने के लिए गन्ने के रस का उदाहरण लेकर समझना चाहिए। गन्ने का रस मीठा होता है उसे भी क्वाथ की तरह उबालते-उबालते वह भी मन्द से तीव्र, तीव्र से तीव्रतर और अन्त में तीव्रतम बनता जाएगा। चूकि यह मीठा रस है अतः अच्छा-प्रिय लगेगा। उसी तरह शुभ पुण्य का रस अच्छा सुखदायि लगेगा इसमें कषाय का कड़वापन न रहने से शुभ पुण्य का रस-विपा कानुभव मीठा सुखदायि लगता है । यह शुभ पुण्य कर्म बन्ध की बात है।
(४) प्रदेश बन्ध- पुद्गल द्रव्य का विचार करते समय इसके चार भेद बताए थे-(१) स्कंध (२) देश (३) प्रदेश और (४) परमाणु इन चार में प्रदेश जो भेद है वह स्कंध का अविभाज्य सूक्ष्मतम अंश है । कार्मणा वर्गणा जो आठ वर्गणाओं में अत्यंत सूक्ष्मतम वर्गणा है उसके पिण्ड रूप स्कंध के अविभाज्य अंशों को प्रदेश कहे जाते है । ऐसे कार्मण प्रदेश आत्म प्रदेशों में जब ग्रहग होते हैं, मिलते हैं तब उन प्रदेशों की सख्या कितनी होती है ? प्रमाण कितना होता है यह आधार प्र श बन्ध पर रहता है । जैसे एक चॉक बना है उसमें चूने के परमाणु कितनी संख्या में आए उसी तरह जीव ने जब कार्मण वर्गणा ग्रहण की है और फिर उसी को पिण्ड रूप में बनाकर कर्म बनाता है अतः उन प्रदेशों के प्रमाण को प्रदेश बन्ध कहते हैं। दूसरा उदाहरण है लड्डु का । एक बन्दी का लड्ड है तो उसमें बून्दी की संख्या कितनी है। प्रमाण कितना है जैसे यह देखा जाता है वैसे ही जीव ने ग्रहण की हुई कार्मग वर्गणा के स्कंध प्रदेशों को प्रदेश बन्ध कहते हैं । इसका आधार मन-वचन-काया के योग पर जितना योग ज्यादा उतने प्रदेशों को जीव ज्यादा खिचेगा । तथा जितना योग कम होगा उतने कार्मण प्रदेश कम खिचे जाएंगे । यह प्रदेश बन्ध का स्वरूप है । इस तरह यह प्रकृतिस्थिति-रस और प्रदेश बन्ध के भेद से चार प्रकार का बन्ध बताया गया है। कर्म की गति न्यारी
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