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________________ अध्यवसाय-परिणाम बनते है। आत्मा में जैसे जैसे कषाय की तीव्रता बढ़ती जाती है वैसे वैसे अशुभ कर्म में रस का प्रमाण बढ़ता जाता है और शुभ कर्म में घटता जाता है । उसी तरह आत्मा में कषायों की मात्रा जैसे जैसे घटती जाएगी वैसे वैसे शुभ कर्म में रस का प्रमाण बढ़ता जाता है और अशुभ कर्म में घटता जाता है। यह तराजु के पल्ले के जैसी बात है । रस बन्ध के तीव्र-मन्दादि भेद से असंख्य प्रकार है । परन्तु कर्म शास्त्र में एकस्थानीय, द्विस्थानीय, तीनस्थानीय, चारस्थानीय के विभाग से चार भेद किये गए हैं। रस बन्ध को समझने के लिए यहां नीम की पत्तियों के कटु रस का उदाहरण दिया जाता है । जो नीचे चित्र के द्वारा समझाया गया है । वह इस प्रकार है-नीम के पत्ते इकट्ठ करके संचे में उनका रस निकालकर एक पात्र में इकट्ठा किया जाय वह चार लिटर प्रमाण रस एक स्थानीय कहा जाएगा । ऐसा जीव मन्द कषाय वाला कहा जाता है । इसी ४ लीटर रस को काफी उबालकर आधा कर दिया जाय अर्थात् २ लीटर रखा जाय वह दो स्थानीय कहा जाएगा। इस जीव के कषाय पहले की अपेक्षा तीव्र परिणाम वाले कहे जाएंगे। फिर उसी शेष २ लीटर रस को क्वाथ की तरह और ज्यादा उबालकर सव्वा लीटर १/३ भाग ही शेष रखा जाय तो इसमें नीम का कड़वापन और ज्यादा बढ़ जाएगा। इस तीन स्थानीय रस के समान तीव्र कषाय के परिणाम वाले जीव तीव्रतर कषायी कहे जाएंगे । इसी सव्वा लीटर शेष रहे रस को और ज्यादा उबालते ही जाएं जो अन्त में पौना लीटर ही शेष रह जाय रस्टो पालनाकारसबछाक साधन سم يم h4 ماعم मंद तीव तीव्रतर तीव्रतम कर्म की गति न्यारी १६८
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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