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का पक्ष युक्तिसंगत नहीं ठहरता, यह चर्चा सुदीर्घं है । गणधरवाद में से विशेष जानकारी प्राप्त करना उचित रहेगा ।
तीर्थंकरों का गति परिभ्रमण
२४ तीर्थंकरों की भव भ्रमण संख्या भिन्न-भिन्न है । जीव ने सम्यक्त्व प्राप्त किया तब से भव संख्या की गिनती करते हैं और निर्वाण प्राप्त करके मोक्ष में जाते हैं उस चरम भव तक भव संख्या गिनी जाती है । सम्यक्त्व नहीं पाये उसके पहले की भव संख्या गिनने जायें ? तो वह अनन्त है । अनन्त की संख्या कहां गिनने जाएं ? सम्भव भी कहां है ? इसलिए सम्यक्त्व प्राप्ति के भव से निर्वाण प्राप्ति के चरम भव तक की भव संख्या गिनी गई है । २४ तीर्थकरों यह भव संख्या भिन्न-भिन्न है ।
भगवान ऋषभदेव के १३ भव हुए हैं । भगवान शान्तिनाथ के १२ भव हुए हैं । भगवान नेमिनाथ के ९ भव हुए हैं । भगवान पार्श्वनाथ के १० भव हुए हैं । भगवान महावीर स्वामी के २७ भव हुए हैं ।
अधिकांश तीर्थंकरों के तीन-तीन भव हुए हैं । परन्तु इन भव संख्यानों में गति परिभ्रमण देखा जाए तो सभी का भिन्न-भिन्न है । भगवान् ऋषभदेव ने १३ भवों में सिर्फ २ गति में परिभ्रमण किया है । वे मनुष्य से देव और देव से पुनः मनुष्य इस तरह दो ही गति में रहे । १३ जन्मों में तीसरी किसी गति में नहीं गये । भगवान नेमिनाथ के भी ९ भव राजुल के सम्बन्ध में हुए हैं । नौ ही जन्मों में देव मनुष्य की दो ही गति का श्राश्रय लिया है। भगवान पार्श्वनाथ ने एक जन्म तिर्यंच गति में किया है । १० भवों में दूसरा भव हाथी का हुआ । अतः पार्श्वनाथ भगवान १० जन्मों में तीन गति का स्पर्श करते हैं । चरम तीर्थंकर प्रभु महावीर स्वामी अपने २७ जन्मों में चारों गति में परिभ्रमण कर चुके हैं । प्रथम नयसार के जन्म में सम्यक्त्व प्राप्त करके अन्तिम २७वें भव में महावीर बनकर मोक्ष में गए । लेकिन बीच में चारों गतियों में जन्म किए हैं । १८वां भव त्रिपृष्ट वासुदेव (मनुप्य गति में) का जन्म । १९वां जन्म सातवीं नरक में नारकी का । २०वां भव तिर्यंच गति में सिंह का । २१वां जन्म पुन: नरक गति में ४ थी नरक में गए । २२वां जन्म मनुष्य का, २३वां जन्म मनुष्य का । २४वां जन्म देवगति का हुआ । इस तरह चारों गति में भटके हैं । भगवान महावीर ने २७ भवों में १४ भव मनुष्य गति में किए,
कर्म की गति न्यारी
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