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गमन जिस तरह क्रिया है उसी तरह विदारणी-राग करना, प्रेम करना, द्वेष शस्त्रादि बनाना, हिंसा करना, आरम्भ समारंभादि करना ये सब क्रिया है। ऐसी २५ प्रकार की मुख्य क्रियाएं हैं । जीव जब इस प्रकार की क्रियानों के प्राधीन होता है तब जीव में कार्मण वर्गणा का आश्रव होता है । जीव कर्माणुगों से लिप्त होता है। कौन सा जीव संसार में क्रिया नहीं करता है ? सभी करते हैं । अतः सभी कर्मों से बंधते हैं । सिद्धात्मा ही सिर्फ अक्रिय-निष्क्रिय है यानि सर्वथा क्रिया रहित है।
कायिकी
अधिकरणिकी
प्राद्वेषिकी |
पालन
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पारितापनिकी
आरंभिकी।
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इस प्रकार पांच मुख्य आश्रव द्वारों के ४२ भेद हुए। इन ४२ तरह से जीव में कार्मण वर्गणा का आश्रय होता है । यात्म प्रदेशों में कार्मण परमाणु भर जाते हैं।
पाश्रव के बाद बन्ध
जैसा कि चित्र में बताया गया है-दो ग्लास दूध के है । पहले ग्लास में दूध
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कर्म की गति न्यारी