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गल में परिवर्तन होता है। संघात से परमाणु जुडकर पुनः स्कंध बन जाते है । उसी तरह विघात की प्रक्रिया से ये ही स्कंध परमाणु रूप बन जाता है । मिट्टी के परमाणु असंख्य-अनन्त की संख्या में इकट्ठे हुए वे एक होकर एक घड़ा बन गया। अब वह एक स्कंध कहलाएगा । एक दिन घडा फुट गया और पुनः मिट्टी के कणकण में विभाजित हो गया। उस मिट्टी का एक सूक्ष्मतम अविभाजित अंश परमाणु कहलाएगा । इस तरह संसार में संघात-विघात की क्रियाएं सतत् चलती रहती है । अतः अणु स्कंध में और स्कंध पुनः अणु रूप में सतत् परिवर्तित होते ही रहते हैं । परमश्चासौ अणुः परमाणुः । जो परम सूक्ष्म अणु है वही परमाणु है । उसे ही अणु कहते हैं । अणु शब्द के आगे ही परम विशेषण लगा दिया है । अर्थ की दृष्टि से अणु
और परमाणु दोनों शब्द समानार्थक है । अर्थ भेद नहीं है । ये परमाणु पुद्गल द्रव्य के ही सूक्ष्मतम अंश है । स्कंध-देश-प्रदेश-परमाणु ये चारों अवस्था पुद्गल की ही है अतः परमाणुओं में भी पुद्गल के गुणधर्म मौजूद रहते हैं। वर्ण-गंध-रस-स्पर्शशब्द आदि जो पुद्गल के गुण धर्म हैं वे परमाणु में रहते हैं । एक परमाणु में १ वर्ण, १ गंध- १ रस- २ स्पर्श इतना तो रहता ही है। पांच वर्षों में से कोई १ वर्ण, २ गंध में से कोई एक गंध, पांच रसों में से कोई १ रस और ८ स्पर्श में से कोई २ रस । या तो शीत या उष्ण, अथवा या तो स्निग्ध या रूक्ष, अथवा गुरू (भारी) या लघु (हल्का) इस तरह परमाणु में वर्ग-गंध-रस-स्पर्श-ध्वनि आदि गुणधर्म रहते ही हैं । तभी परमाणु के स्कंध बनने से उसमें प्रगट होते हैं। यदि रेती के एक-एक
स्कंध ..
स्कंध
वेश | प्रदेश
का
परमाणु
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कर्म की गति न्यारी