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एक जाति से दूसरी जाति में जाते हैं, एक गति से दूसरी गति में जाते हैं, जन्म लेते हैं, मरते हैं, फिर जन्म लेते हैं, फिर मरते हैं । इस तरह यह चक्र चलता रहता है । सभी जीवों की यही दशा है और मेरी भी यही दशा है । इस तरह अनन्त काल भी बीत गया । चारों गति में घूमता है, भटकता हूं, सतत परिभ्रमण कर रहा हूँ । परन्तु आज भी ज्ञान योग से देखूं, या ज्ञानी भगवंत से पूछूं तो पता चलेगा कि जहां था वही हूँ । इसी चार गति के चक्र में घूमता जा रहा हूँ । चार गति के संसार चक्र से बाहर नहीं निकल पा रहा हूं । न मालूम एक-एक गति में मेरे कितने जन्म-मरण होते गए और आज दिन तक कितने जन्म बीत गए ? यह कैसे पता चले ? चार गति का यह संसार चक्र अभिमन्यु के कोठे की तरह बड़ा ही गहन है ।
संसार चक्र का चक्रव्यूह
एक सीधा स्वस्तिक है और दूसरा गोल स्वस्तिक है । प्रकृति भेद हैं परन्तु बात वही है । ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि स्वस्तिक की चारों पंखुडियां कितनी लम्बी है । एक - एक गति की दिशा देखिए, प्रत्येक गति की दिशा चारों गति में घूमती हुई पूरा गोल चक्र काट रही है । इस तरह जीव चारों गति में घूमता हुआ एक-एक गति में कितनी बार घूम चुका है ? एक ही गति में जीव ने कितने जन्म धारण किए हैं ? यही बताना असम्भव सा लगता है । अभिमन्यु के गूढ कोठे की तरह इस संसार चक्र में फंसा हुआ जीव बाहर ही नहीं निकल पा रहा है । श्रनन्त काल बीत गया । कब से प्रारम्भ हुआ इसका पता नहीं है, अतः वह भी अनादि कहा जाता है । इस तरह अनादि प्रनन्त काल से जीव इन चार गति के संसार में सततअविरत परिभ्रमण कर रहा है । उदाहरणार्थ मेले में लगे हुए गोल चक्र में जब हम बैठते हैं और चक्र जब ऊपर से नीचे; नीचे से ऊपर गोल-गोल घूमता जाता है तब गति की तीव्रता के कारण हम बाहर कोई दृश्य साफ नहीं देख पाते । दिमाग चक्कर खाने लगता है | बस सिर्फ इतना ही पता चलता है कि हम गोल-गोल घूमते जा रहे हैं। बच्चों के लिए बने गोल चक्र में बच्चों को जैसे बैठाकर घुमाया जाता है वैसे ही हम सभी जीव इस चार गति के गोल चक्र-संसार चक्र में घूम रहे हैं । जन्म-मरण
कर्म की गति न्यारी
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