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अतः कालादयः सर्वे समुदायेन कारणम् । गर्भादेः कार्यजातस्य विज्ञेया न्यायवादिभिः ।
न चैकैकत एवेह क्वाचित्किञ्चिदपीक्ष्यते । तस्मात् सर्वस्य कार्यस्य सामग्री जनिका मता ।।
कालादि पांचों की संयुक्त कारणता काल-स्वभाव-नियति-पूर्वकृत कर्म एवं पुरुणार्थ ये सभी कार्य में एक-एक प्रत्येक रूप से कारण नहीं है । स्वतन्त्र निरपेक्ष कारण मानने पर दोष आयेगा। अतः ये पांचों कारणों का समन्वय करना ही सम्यग् धारणा है । कालादि अन्य निरपेक्ष होकर कार्य के उत्पादक नहीं होते अपितु अन्यहेतुओं के सामग्रीघटक होकर कार्योत्पादकता होते हैं । नियति आदि एक एक कारणमात्र से जगत् में किसी भी कार्य की उत्पत्ति नहीं देखी जाती किन्तु कारण सामग्री से ही देखी जाती है और कारण सामग्री उस कारण से कथंचित् भिन्नाऽभिन्न होती है । अतः एकैक कारण भी सामग्रीविधिया कार्य का कारण होता है। यदि निरपेक्ष हो तो अकारण होगा। कारण समुद्रायात्मक सामग्री में कार्य की उपधायकता बतायी है । कारणों को कार्य की उत्पत्ति में अव्यवहित उत्तर क्षण में बताया जाता है । कार्यरुपी पालकी को उठाने के लिए एक कारण सक्षम नहीं होता । पांचों कारण परस्पर सापेक्षभाव से मिलकर ही एक साथ उठायें तभी उठा सकेंगे। इन पांच कारणों में गौण-मुख्य भाव अपेक्षा से हैं। किसी भी कार्य में पांचों ही सम्मिलित होकर जरूर रहेंगे। लेकिन ये सभी गौण-मुख्य भाव से रहेंगे। जिसकी बलवत्ता होगी वह प्रमुख और अन्य गौण । अर्थात पुरूषार्थ की प्रधानता होगी तो दूसरों की गौणरूप से कारणता होगी । परन्तु होगी जरूर ।
___ उदाहरण के रूप में किसान खेती करता है तो उसमें वर्षाऋतु के काल की अपेक्षा रहती है । काल अनुकूल होना चाहिए । बीज में अंकुर उत्पन्न करने का स्वभाव होना चाहिए । बीज जला हुआ दग्ध होगा तो उगने का स्वभाव नष्ट होने के बाद कहां से उगेगा। नियति या भवितव्यता अनुकूल होनी चाहिए । नहीं तो टिड्डे आदि फसल को खत्म करदें अथवा पानी बाढ़ भी आ सकती है। अतिवृष्टि-अनावृष्टि भी फसल को खतम कर सकती है। अतः नियति भी सानुकूल होनी चाहिए। पूर्वकृतकर्मानुसार किसान का भाग्य भी ठीक होना चाहिए । वह भी पूरा साथ दे यह आवश्यक है । यदि पूर्वकर्मानुसार किसान रोग. ग्रस्त बीमार हो गया तो भी खेती नहीं हो पायेगी । ये चारों कारण ठीक तरह से
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कर्म की गति न्यारी