________________
कहते हैं। और जड़ का एक अंश कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणु है। उन पुद्गल परमाणुओं वाली कार्मण वर्गणा को जीव राग-द्वेषादि कारण से अपने में खींचता है। उसे कर्म रूप में परिणत करता है। जैसे चुम्बक में चुम्बकीय शक्ति है । मूलभूत पड़ी ही है। चूंकि वस्तु अनंत धर्मात्मक है। उसी तरह चेतन आत्मा में भी रागादि भाव पदार्थ निमित्तक है। अतः वह आकर्षित करता है। उससे कामण वर्गणा आत्म संयोगी बनकर कर्म बनते हैं। जीव के साथ कर्म का संयोग-वियोग ही सृष्टि की वैचित्र्यता का सही कारण है ऐसा मानना उचित है।
दूसरी तरफ आप यदि ईश्वर को सृष्टि के वैचित्र्य का कारण मानोगे तो भी आवश्यक उपकरणों के रूप में जीव और कर्म का अस्तित्व प्रथम स्वीकारना ही पड़ेगा। क्योंकि आवश्यक उपकरणों के अभाव में ईश्वर सृष्टि की रचना कैसे कर सकेगा? जैसे एक कुम्हार घड़ा बनाता है तो मिट्टी,पानी,अग्नि,दण्ड,चक्र आदि आवश्यक उपकरण उपस्थित हो तो ही बना सकता है। यदि ये उपकरण न हो तो कुम्हार घड़ा कैसे बनाएगा ? साधन के बिना बनाए किससे ? एक रसोईया रसवती बनाने में काफी कुशल है। सारी जानकारी अच्छी है। परन्तु सामग्री के अभाव में अच्छी रसोई कैसे बना सकेगा? वैसे ही आपके कथनानुसार मान लिया कि ईश्वर सर्वज्ञ है। सृष्टि रचना एवं वैचित्र्यादि के निर्माण का पूरा ज्ञान ईश्वर को है। अतः वह सृष्टि निर्माण करने में समर्थ है। परन्तु हमारा यह पूछना है कि क्या समर्थ ईश्वर भी आवश्यक सामग्री के अभाव में भी सृष्टि निर्माण कर सकेगा? जो आवश्यक उपकरण चाहिए उसके बिना ईश्वर सृष्टि कैसे बना पाएगा? घड़ा बनाने के लिए जैसे मिट्टी, पानी आदि सामग्री की आवश्यकता है। रसोई बनाने के लिए अनाज-सब्जी-पानी-अग्नि आदि कई सामग्री की आवश्यकता है उसी तरह सृष्टि निर्माण करने के लिए ईश्वर को भी जीव-कर्मादि आवश्यक उपकरण या सामग्री की आवश्यकता पड़ेगी। जबकि जीव कर्मादि सामग्री के अभाव में ईश्वर सृष्टि रचना करे यह संभव नहीं है। यदि आप सामग्री के अभाव में सृष्टि मानते हो तो अनाज-पानी-अग्नि आदि सामग्री के अभाव में रसोई बनाकर बताइए, या मिट्टी-पानी आदि किसी भी सामग्री के बिना घड़ा बनाकर बताइये । इस तरह संसार में अनर्थ की परम्परा चल पड़ेगी। अच्छा, तो फिर कर्म फल देने में जीवों में कर्म का अस्तित्व क्यों माना है? क्यों ईश्वर किसी को कर्म का फल देते समय उस जीव के कर्मानुसार फल देता है ऐसा भी क्यों कहते हैं? फल देने के लिए कर्म भी आवश्यक सामग्री हो गई। यह तो आप खुद स्वीकार करके ही बोल रहे हैं। आपके शास्त्र कह रहे हैं कि - ईश्वर जीव के कर्मानुसार फल देता है। मतलब आपने ईश्वर निर्मित सृष्टि के लिए जीव और कर्म को अनुत्पन्न रूप से आवश्यक सामग्री मान ली है। और यदि नहीं मानते हैं तो ईश्वर का कृतिमत्व सामग्री
-कर्म की गति नयारी