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________________ विपाकाशयैरपरामृष्टः पुरुष विशेष ईश्वरः ।' क्लेश-कर्म और उनके फलों से एवं वासनादि से असंस्पष्ट पुरुष विशेष को ही ईश्वर कहा गया है। परम पुरुष ईश्वर स्वरूप है। वही परमानन्द रूप है। हिन्दू धर्म में, वैदिक परम्परा में ईश्वर को ब्रह्मा-विष्ण और महेश के तीन रूपों में माना गया है। ब्रह्मा सृष्टी की रचना करता है। विष्णु सृष्टि का पालनहार है। महेश को प्रलयकारी संहारकर्ता के रूप में स्वीकारा गया है। ईश्वर के ही हाथ में सभी जीवों के कर्म फल देने की सत्ता है। ईश्वर ही जगत् का नियन्ता है। अतः ईश्वर इच्छा ही बलवान है। ईश्वरेच्छा के बिना वृक्ष का पत्ता भी नहीं हिल सकता। यहां अवतारवाद माना गया है। एक ही ईश्वर पुनः पुनः जन्म लेते हैं । अतः एकेश्वरवाद की कल्पना है। जीव को ईश्वर का ही अंश माना गया है। यह मान्यता वैदिक परम्परा की है। मीमांसा मत पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा - ये ईश्वर को सष्टिकर्ता के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। यहां ईश्वर से भी ज्यादा वेद को महत्त्व देते हुए वेद को अपौरुषेय सिद्ध किया गया है । जगत्कर्तृत्व वाद का मीमांसक खण्डन करते हैं । कर्म प्रधानता मानी गई है। उत्तर मीमांसा ही वेदान्त दर्शन कहा जाता है। ब्रह्म का इसमें मुख्य वर्णन है। इसमें भी शांकरवेदान्त, रामानुज-वेदान्त, निम्बार्क-वेदान्त, माघ्व-वेदान्त, वल्लभ-वेदान्त आदि कई भेद हैं। थोड़े-बहुत अन्तर के साथ सबकी मान्यता में भेद हैं। रामानुज वेदान्त के अनुसार ईश्वर अनन्त ज्ञानवान, आनन्दरूप सद्गुणयुक्त, विश्वसृष्टा, पालक और संहारक, चारों पुरुषार्थों का दाता, इच्छारूप धारण करने वाला है। ब्रह्म सगुण है। वह पुरुषोत्तम है। शांकरमतानुसार ईश्वर सर्वज्ञ तथा सर्वशक्तिमान है। ईश्वर जीवों का नियन्ता है। शैवमत-वैष्णव मत आदि कई मत हैं। कुछ भेद के साथ सभी सेश्वरवादी मान्यता रखते हैं। सिख धर्म में ईश्वर एक है। एक ईश्वर सबका पिता माना गया है। वही सब कारणों का कारण है। ईश्वर एक ही है। सिख भी सृष्टिकर्ता के रूप में ईश्वर को मानते हैं। एक स्वयंभू, स्वयं अवलंबित ईश्वर ने ही यह संसार बनाया है। सब पर उसी का शासन है। ईश्वर अनंत, अकाल और निरंकार है । ईश्वर सर्वव्यापी है। पारसी धर्म में ईश्वर की कल्पना की गई है। आहुर-मज्दा आत्मा रूप है। वह परम मंगलकारी है। वे सारी पृथ्वी से ऊपर स्वर्ग में हैं। जरथुष्ट ने यह कल्पना जगत् को देते हुए ईश्वर का स्वरूप बताया है। सर्वोच्च सत्ता के लिए आहुर-मज्दा के नाम का ईश्वर के लिए प्रयोग किया गया है। सर्वश्रेष्ठता बताई गई है। वही सर्वेसर्वा सर्व रूप में है। ईसाई धर्म ईसा मसीह से चला है। ईसा ने अनन्त दयालु के रूप में ईश्वर को बताया । वह मनुष्य पर अत्यधिक प्रेम करता है। अतः ईश्वर को प्रेम व दया का कर्म की गति नयारी (५८)
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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