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त्रिशष्ठी शलाका पुरुष चरित्र में चौबीसों भगवान की स्तुति करते हुए सकलार्हत स्तोत्र में कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य महाराज श्रेयांसनाथ भगवान की इस स्तुति में कहते है कि रोग ग्रस्त किसी रोगी को वैद्य के आगमन की सूचना मात्र कितना आश्वासन दिलाती है। जैसे कोई मरीज बीछाने पड़ा हुआ त्रस्त है। चिल्ला रहा हो और उसे सूचना दी जाय कि वैद्यराज आ रहे है। शायद उनसे सुनते ही आधी तो मानसिक शांति हो जाती है । वैद्य के दर्शन होते ही मरीज आधा शांत हो जाता है। उसी तरह भव रोग से पीडित मेरे जैसे रोगी के लिए है श्रेयांसनाथ भगवान ! आपके दर्शन भी शांत्वना देने वाले है। रोगी के लिए वैद्य की तरह आपके दर्शन मेरे लिए लाभदायि है। निःश्रेयस = मोक्ष में विलास करने वाले ऐसे श्री श्रेयांसनाथ भगवान हमारे श्रेय = कल्याण के लिए हों । ऐसी भावना व्यक्त की गई है। अतः जिनेश्वर परमात्मा हमारे भव रोग के महान चिकित्सक है । उन्हीं से हमारा यह भव रोग मिट सकता है। भव भीरू और पाप भीरू :
संसार में सर्वत्र पात्रता देखी जाती है। एक पिता अपनी कन्या की शादी के लिए भी सामने युवक की पात्रता देखता है। उसी तरह एक पिता अपने लाखों की कमाई अपने पुत्र को देने के पहले उसकी पात्रता, योग्यता देखता है, उसी तरह धर्म के लिए धर्मी की पात्रता क्या हो सकती है। धर्म करने के लिए कौनसा जीव योग्यपात्र कहलाता है ? इसका उत्तर देते हुए महापुरुषो ने भव भीरू और पाप भीरू जीव को ही धर्म के लिए. योग्य पात्र ठहराया है। अर्थात् जिसके मनमें भव = संसार के प्रति भय हो ऐसा भव भीरू धर्मी कहलाने के लिए योग्य पात्र है। अब मेरी भव संख्या बढ़ न जाय इसके लिए जो जागरूक है वह भवभीरू योग्य पात्र है। मानों कि एक मरीज डॉक्टर की दवाई ले रहा है। ज्वर उतारने के लिए डॉक्टर ने सूई लगाई । फिर भी यदि ज्वर कम होने की अपेक्षा बढ़ता ही गया। ऐसा ही दो-तीन दिन तक चलता रहा लेकिन इसके बाद क्या ? क्या आप डॉक्टर को योग्य कहेंगे ? औषधि जो रोग को बढ़ायें उसे औषधि कैसे कहें ? अतः वह औषधि उस रोग के लिए उचित नहीं है। वैसे अब मैं जीवन ऐसा जीउ कि मेरा भावी संसार न बढ़े। मेरी भावी भव परम्परा बढ़ न जाय ऐसा भवभीरू जीव ही धर्म क्षेत्र में योग्यता धारक गिना जाएगा।
भवभीरू बनने के लिए पापभीरू बनना आवश्यक है। पाप से डरने वाला अर्थात् पाप हो न जाय, किसी क्रिया में पाप कर्म न लग जाय, इसका कदम-कदम उपयोग रखने वाला ही पाप भीरू कहलाता है। कायर और कमजोर यदि कहीं होना भी है तो पाप के सामने कमजोर होना भी अच्छा है। आज धर्मी अनेक है। धर्म करने वाले अनेक है। परन्तु पाप न करने वाले, पाप न करने की प्रतिज्ञा करने वाले बहुत कर्म की गति नयारी
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