________________
लग गइ। कैसा विचित्र है यह संसार ? कैसी घटनाएं घटती है ? कैसा स्वरूप धारण कर लेती हैं ? विचित्रता-विषमता और विविधता :
इस तरह देखने से स्पष्ट दिखाई देगा कि समस्त संसार का स्वरूप सैंकड़ों प्रकार की विचित्रताओं, विविधताओं एवं विषमताओं से भरा पड़ा है। अतः यही सत्य कहा जाता है कि जहां इस प्रकार की विचित्रता, विषमता एवं विविधताएं भरी पड़ी है वही संसार है। उसी का नाम संसार है। संसार के बाहर मोक्ष में इनमें से एक भी नहीं है। चित्र = अर्थात् आश्चर्य =विचित्रता अर्थात् आश्चर्यकारी-विस्मयकारी स्वरूप । अतः संसार का स्वरूप जो भी कोई देखे उसे आश्चर्यकारी ही लगेगा । संसार में आश्चर्य नहीं होगा तो कहां होगा? अतः समस्त आश्चर्यों का केन्द्र संसार ही है। आप देखेंगे कि -
कोई सुखी है तो कोई दुःखी है । कोई राजा है तो कोई रंक है।
कोई अमीर है तो कोई गरीब है। . कोई बंगले में है तो कोई झौंपड़ी में है।
कोई राजमहल में है तो कोई फुटपाथ पर है। कोई हसमुख है तो कोई रोता हुआ है। कोई प्रभाव सम्पन्न है तो कोई प्रभावरहित है। कोई बुद्धिमान चतुर है तो कोई बुद्ध मूर्ख है। कोई साक्षर विद्वान है तो कोई निरक्षर भट्टाचार्य है। कोई सन्तोषी है तो कोई लालचु है। कोई सीधा-सादा सरल है तो कोइ मायावी कपटी है। कोई निर्लोभी है तो कोई लोभी है। कोई भोला-भाला भद्रिक है तो कोई छलकपट करनेवाला प्रपंची है। कोई ज्ञानी है तो कोई अज्ञानी है। कोई उदार दानवीर है तो कोई उधार लेकर भी कृपण है। कोई वैरागी है तो कोई रागी है। कोई धनवान सम्पन्न है तो कोई निर्धन विपदा में है। कोई सबल है तो दूसरा निर्बल है। कोई साधार सशरण है तो कोई निराधार अशरण है। कोई सज्जन है तो कोई दर्जन है।
कोई गोरा सुन्दर रूपवान है तो कोई काला कुरूप है। कर्म की गति नयारी
(४४)