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________________ है। फिर वही क्रम उसी तरह वापिस चढो। इस तरह ८४ लक्ष जीव योनियों में जाता हुआ, चारों गति में पाचों जाति में-अर्थात् पांचों इन्द्रियों में भिन्न भिन्न जन्म-मरण करता हुआ कितने चक्र पूरे कर चुका है ? इस प्रश्न के उत्तर में केवलज्ञानी भगवान भी यही शब्द कह सकते हैं कि - अनंत जन्म कर चुका है तथा काल की दृष्टि से अनंत पुद्गल परावर्त काल बिता चुका है। तैली के बैल की तरह घूमता ही जा रहा है। घड़ी के कांटे की तरह अविरत सतत गोल-गोल घूमता ही जा रहा है। इन अनंत चक्र वाले संसार चक्र का कहीं अन्त ही नहीं है। अन्त जीव को अपने जन्म-मरणों का लाना होगा। इस विषय में एक उपमायुक्त एक दृष्टान्त है, वह रूपक देखिए - भूतकाल के भवों की गिनती :- . किसी एक जीव ने सर्वज्ञ केवलज्ञानी भगवान से अपने खुद के भूतकाल के भवों की संख्या के बारे में प्रश्न पूछा । हे प्रभु ! निगोद से निकलकर आज दिन तक इस भव तक मैंने कितने भव किये होंगे? कितना काल बीता होगा? कैसे कैसे भव किये हैं ? इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए केवलज्ञानी सर्वज्ञ प्रभु ने फरमाया कि - हे जीव ! तूने इतने अनंत जन्म धारण किये हैं कि उन सबके कहने जितना तो मेरा आयुष्य काल भी नहीं है। कैसे कहूँ ? बात भी सही है। अनंत ज्ञानी सर्वज्ञ प्रभु त्रिकाल ज्ञानी है। यद्यपि अपने अनंत ज्ञान से तीनों काल की बातें एक ही समय एक साथ जानते हैं, केवल दर्शन से एक साथ देखते भी हैं । परन्तु मुंह से कहना हो तो क्रमशः एक के बाद एक ही कह सकेंगे। एक साथ सब तो कहना संभव भी नहीं है। चूंकि शब्द तो एक के बाद एक ही निकलेंगे। इस तरह से एक-एक जन्म का सिर्फ नाम निर्देश भी करें तो भी वे सभी भव कह नहीं पाएंगे। क्योंकि आयुष्य काल सीमीत है। __अतः रूपक उपमा से कल्पना के बल पर समझिए कि केवलज्ञानी का एक हजार वर्ष का आयुष्य काल हो । जैसे रावण के दस मंह की कल्पना की गई है उस तरह सर्वज्ञ के मानों एक हजार मुंह भी हों और प्रत्येक मुंह से नाम निर्देश मात्र करते हुए मुंह से १ भव का उल्लेख मात्र ही करें और आगे कहते ही रहें तो १ सेकंड में कितने भव कहे? १ सेकंड में १००० भव कहे। तो १ मिनीट में कितने ? ६0000 भव कहे। तो १ घंटे में कितने भव कहे ?...इस तरह १ दिन में कितने भव कहे ?...इस तरह एक महिने में कितने भव कहे ? १ वर्ष में कितने भव कहे... उसी तरह १०० वर्ष में कितने भव कहे ? बिल्कुल रुके बिना धारा प्रवाहबध्द अविरत कहते ही जाय तो १००० वर्ष में कितने भव कहें? सुनने वाला थक जाता है और प्रभु से पुछता है - हे भगवान! अब कितने कहे और कितने कहने और शेष हैं ? इसके उत्तर में केवलज्ञानी भगवान कहते हैं कि - मेरा तो आयुष्य समाप्त होने आया है। कर्म की गति नयारी (३०)
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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