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________________ किसी के मोक्ष में जाने से निगोद से बाहर निकला हुआ जीव अब अपनी संसार यात्रा का प्रारम्भ करता है । सर्वप्रथम वह जीव गोले से बाहर आकर सूक्ष्म स्वरूप से ऊपर उठकर बादर साधारण वनस्पतिकाय में कई जन्म धारण करता है । दिवाल पर की काई, फूलण, पंचवर्णी फूग-फिर आलु, प्याज, लहसून, गाजर, मूली, शकरकंद आदि इन सभी बादर (स्थूल) साधारण वनस्पतिकाय में जन्म धारण करता है । वनस्पतिकाय का चक्र पूरा करके आगे पृथ्वीकाय में पत्थर, मिट्टी, सोना, चांदी पीतल, लोहा आदि धातुओं में, पारा, फिटकारी, हिंगलोक, हरताल, सौवीरंजन आदि पृथ्वीकाय के अनेक जन्मधारण करता हुआ अप्काय में जाता है। अप = पानी, पानी का शरीर जन्म धारण करता है। पानी की एक बूंद में असंख्य जीव इकट्ठे रहते हैं । सूक्ष्म या बादर साधारण शरीर में जहां एक शरीर में एक साथ अनंत जीव रहते थे । वह दुःख अब पानी में कम हुआ। और पानी में एक बून्द में एक साथ असंख्य जीव रहते हैं । अनंत की संख्या से असंख्य पर आए अतः कितनी कम संख्या हो गई । और साधारण से जब प्रत्येक वनस्पतिकाय में जीव आता है तब बड़े आराम से एक शरीर में अकेला एक ही जीव रहता है । अप्काय में समुद्र में, नदीनाले में, बरसात का पानी, ओस, झाकल, कुए, तालाब, इत्यादि पानी के रूप में कई जन्म बिताए । फिर आगे बढ़ा प्रत्येक वनस्पतिकाय में केला, सेब, नास्पति, T मौसंबी, सन्तरा, हरी वनस्पति में पेड़, पौधा, पत्ता, फल फूल में गया । हरी, तरकारियों में गया। असंख्य जन्म यहां भी किए। आगे बढ़ता हुआ ते काय (तैजसकाय) अर्थात् अग्निकाय में आया । ज्वाला के रूप में दीपक की लौ, भट्ठी में, तिनके के रूप में, बिजली के रूप में अग्निकाय के कई जन्म धारण करके वायुकाय में प्रवेश किया। हवा के देह में जन्म लिया । वायु मंड़ल में कई प्रकार की हवा बनी । पुनः आगे प्रत्येक वनस्पतिकाय में आया । इस तरह एकेन्द्रिय पर्याय के पांचों स्थावर शरीर में आकर जीव ने अनन्त जन्म-मरण यहां धारण किए । जीव की संसार यात्रा और आगे बढ़ी। थोड़ा ऊपर चढ़ा और जीव द्वीन्द्रिय दो इन्द्रिय वाले जीवों में आया। शंख, कौड़ी, सीप, भिन्न-भिन्न प्रकार के कृमि बना । हमारे पेट में कृमि-कीड़े के रूप में जन्म लिया। केंचुआ तथा कई प्रकार के बेक्टरिया के रूप में जन्म लिया । अब आगे बढ़कर जीव तेइन्द्रिय में आया। यहां तीन इन्द्रियों वाला शरीर मिला । चींटी, मकोड़ा, सिर पर जूं, शरीर पर सावा नामक जूं, अनाज के कीड़े (धनेड़ा), भिंडी, मटर आदि में होनेवाली लट (ईयल), खटमल, दीमक आदि के रूप में कई जन्म तेइन्द्रिय में किये। यहां से ऊपर उठकर आगे बढ़ता हुआ जीव चउरिन्द्रिय पर्याय में आया । चार इन्द्रिय वाला जीव बना । जिसमें मक्खी, मच्छर, भंबरा, तीड़ आदि के कई जन्म किये । शास्त्रकार महापुरुष कहते हैं कि अनेक जन्मों की संचित पुण्याई के योग कर्म की गति नयारी २६.
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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