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________________ बालक के लिए किसका महत्त्व है ? माता का या पिता का ? कौन ज्यादा उपकारी है ? पुरुष वर्ग कहेगा पिता और स्त्रीवर्ग कहेगी माता । लेकिन ऐसा भी नहीं हैं दोनों के दोनों ही समानरूप से उपकारी है । कोई अरिहंत बना तभी तो कोई सिद्ध हुआ । अरिहंत ही नहीं हुए होते तो धर्मस्थापना कौन करता? तो कोई जीव धर्म पाता ही कहां से? और धर्म ही नहीं पाता तो कोई मोक्ष में जाता ही कहां से? अतः अरिहंत पिता के स्थान पर प्रथम उपकारी है । तथा बाद में माता जिस तरह ९ ।। महिने अपने उदर में धारण करके प्रसवपीड़ा को सहनकर भी संतान को जन्म देती है तभी तो बालक इस पृथ्वी पर अवतरता है । इसी तरह सिद्ध बनने वाले जीव ने हमको निगोद के गोले से बाहर निकाला अर्थात् बाह्य संसार में जन्म दिया । अतः सिद्ध परमात्मा मातृपद पर माता की तरह पूजनीय है । इसिलिए " त्वमेव माता-पिता त्वमेव...” हे भगवन्! आप ही माता हो आप ही पिता हो... इत्यादि हम प्रभु को जो उपमा देते हैं वह यथार्थ ही है । मातृ स्वरूप में प्रभु सिद्ध परमात्मा और पितृ स्वरूप में प्रभु अरिहंत परमात्मा अनंत उपकारी है। अब हमें अनंत जन्म तक भी उनका उपकार नहीं भूलना चाहिए। माता ने तो ९ ।। महिने धारण करके जन्म दे दिया । परंतु अनंतकाल तक निगोद के गोले की काली अन्धेरी कोटड़ी में जो असह्य कल्पनातीत वेदना सहन कर रहे थे, अनंत जन्म-मरण कर रहे थे उसमें से जन्म दिया है - बाहर निकाला है अतः सिद्ध परमात्मा तो माता से भी अनंतगुने ज्यादा उपकारी है । अनंतअनंत गुना ज्यादा उपकार है मुक्तात्मा का । भले ही वह हमारी आंखों के सामने प्रत्यक्ष स्वरूप न हो परोक्ष स्वरूप में ही हो परन्तु माने बिना, स्वीकारे बिना नहीं चलेगा | श्री नमस्कार महामंत्र का अनन्तबार जप - ध्यान - स्मरण करें तो भी हम इस उपकार का ऋण कभी भी नहीं चुका सकते । सिद्ध परमात्मा के उपकार का शतप्रतिशत संपूर्ण ऋण तो हम तभी चुका सकते हैं जबकि हम स्वयं सिद्ध बनकर किसी जीव को निगोद के गोले की अनंतगुनी वेदना से मुक्त कराके बाहर निकालें । निगोद से उसे बाह्य संसार के धरातल पर जन्म दें। तभी सिद्ध परमात्मा के उपकार का ऋण चुकाया जाएगा। उसी तरह अरिहंत परमात्मा के अनंत उपकार का ऋण भी तभी चुकाया जाएगा, जब हम स्वयं एक दिन अरिहंत बनकर अनेक जीवों को धर्मोपदेश से तारें । उनका कल्याण करें । उन्हें मोक्षमार्ग पर लाएं। उन्हें सिद्ध बनाने में पुरुषार्थ करें। मोक्षमार्ग के दर्शक बनें। तभी अरिहंत के उपकार का ऋण चुकाया जाएगा। अतः जो जो भी जगत में तीर्थंकर बने हैं हम उनका अनंत उपकार मानें। उदाहरणार्थ भगवान महावीर तीर्थंकर अरिहंत बने तो कितना अच्छा हुआ ? कितने भव्यात्माओं का कल्याण किया । कितने जीवों को मोक्षमार्ग की पटरी पर चढ़ाया । I 1 I कर्म की गति नयारी: २४
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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