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________________ to the notic (१०) दसवां पूर्व ५१२ हाथी प्रमाण स्याही से लिखा गया है। (११) ग्यारहवां पूर्व १०२४ हाथी प्रमाण स्याही से लिखा गया है। (१२) बारहवां पूर्व २०४८ हाथी प्रमाण स्याही से लिखा गया है। (१३) तेरहवां पूर्व ४०९६ हाथी प्रमाण स्याही से लिखा गया है। (१४) चौदहवां पूर्व ८१९२ हाथी प्रमाण स्याही से लिखा गया है। १४ पूर्व कुल१६३८३ हाथी प्रमाण स्याही पुंज से लिखे गए हैं। इन पूर्वो के रचयिता गणधर महाराज होते हैं । इन १४ पूर्वो में से नौवां जो प्रत्याख्यान प्रवाद नामक पूर्व है जो २५६ हाथी प्रमाण स्याही पुंज से लिखा गया है, उसमे से उद्धृत करके दशाश्रुत स्कध शास्त्र बनाया गया है। इस दशाश्रुत स्कंध शास्त्र के १० अध्ययन है उन दश अध्ययनों में से आठवां अध्ययन ‘पज्जोसणा कप्पो' नामक है। यह मूल नाम है। इसीको ‘पर्युषणा कल्प' कहा जाता है, और आगे चलकर संक्षिप्त नाम से कल्पसूत्र व्यवहार हो. गया है। अतः आज जो कल्पसूत्र कहा जाता है वह दशाश्रुत स्कंध शास्त्र का आठवां अध्ययन है, और दशाश्रुत स्कंध मूलं नौंवा प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व का एक विभाग है। इस तरह यह श्रुतज्ञानअगाध समुद्र रूप है। चौदह पूर्वी भद्रबाहुस्वामी महाराज ने यह कल्पसूत्र नौवे पूर्व में से उद्धृत करके बनाया है। भद्रबाहूस्वामी आदि मुख्य ६ श्रुतकेवली चौदहपूर्वी थे। अभिधान चिन्तामणि कोष में हेमचन्द्राचार्य महाराज ने इस प्रकार नाम दिये हैं - अथ प्रभवप्रभुः। शय्यंभवोयशोभद्रः सम्भूतविजयस्ततः ।।३३।। भद्रबाहुः स्थूलभद्रः श्रुतकेवलिनो हि षट् ।। महागिरि सुहस्त्याद्या वज्रान्तादशपूर्विणः ।।३४।। (१) प्रभवस्वामी (जम्बुस्वामी के शिष्य) (२) शय्यंभवसूरि म. (३) यशोभद्रसूरि म., (४) सम्भूतविजयजी म. (५) भद्रबाहुस्वामी म. (६) स्थूलभद्रस्वामी म. ये छह श्रुतकेवली चौदह पूर्वधारी थे। इनको चौदह पूर्वो का संपूर्ण ज्ञान था । अतः वे केवलज्ञानी न होते हुए भी उनके समान श्रुतज्ञान के बल से कहने वाले श्रुत केवली थे। तथा आर्यमहागिरिस्वामी म., आर्यसुहस्तीस्वामी म., आर्यवज्रस्वामी म. ये महापुरुष दशपूर्वधर ज्ञानी कहलाते थे। इसके बाद दशपूर्वीयों में किसी का नाम नहीं आता। यहां तक अर्थात् इन महापुरुषों तक ही दश पूर्वीयों का नाम आता है। तत्पश्चात् पूर्त में इतने ज्यादा १४-१० पूर्वो के ज्ञानवाले नहीं हुए। पूर्वो का ज्ञान विच्छेद गया। नष्ट हआ। अंत में पूर्वधर वाचक मुख्य श्री उमास्वाति महाराज कहे जाते हैं। इस तरह श्रुत ज्ञान अर्थात् शास्त्र ज्ञान एक अगाध समुद्र से भी कर्म की गति नयारी -(२०४)
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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