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________________ बनते हैं। १. पर्याय श्रुत - उत्पत्ति के प्रथम समय में, लब्धि अपर्याप्त, सूक्ष्म निगोद के जीव को जो कुश्रुत का अंश होता है, उससे दूसरे समय में ज्ञान के अंश की जो पर्याय बढ़ती है वह पर्याय श्रृंत है। २. पर्याय समास श्रुत - उक्त पर्याय श्रुत के समुदाय को अर्थात् दो, तीन आदि संख्याओं को पर्याय समास श्रुत कहते हैं। ३. अक्षर श्रुत - अकार से हकारादि तक के लब्ध्यक्षरों से किसी एक अक्षर के ज्ञान को अक्षर श्रुत कहते हैं। ४. अक्षर समास श्रुत - लब्ध्यक्षरों के समुदाय को अर्थात् २, ३ आदि संख्याओं को अक्षर समास श्रुत कहते हैं। ५. पद श्रुत - जिस अक्षर समुदाय से पूरा अर्थ मालुम हो वह पद (A Sentence is group of Words) कहा जाता है, पद के ज्ञान को पदश्रुत कहते हैं। ६. पद समास श्रुत - अनेक पदों के समुदाय का ज्ञान पद समास श्रुत कहलाता है। ७. संघात श्रुत - गति आदि चौदह मार्गणाओं में से किसी एक मार्गणा के एक देस के ज्ञान को संघात श्रुत कहते हैं। ८. संघात समास श्रुत - चौदह मार्गणाओं में से कीसी भी एक मार्गणा के अनेक अवयवों का ज्ञान संघात समास श्रुत कहलाता है। ९. प्रणिपत्ति श्रुत - गति, इन्द्रिय, व्दारों में से किसी एक व्दार के जरिए समस्त संसार के जीवों को जानना प्रतिपत्ति श्रुत है। १०. प्रतिपत्ति समास श्रुत - गति आदि दो-चार व्दारों के जरिए जीवों का ज्ञान प्रतिपत्ति समास श्रुत कहलाता है। ११. अनुयोग श्रुत - “सत् पय परुवणया दव्व पमाणं च' इस गाथा में कहे हए अनुयोग व्दारों में से किसी एक के व्दारा जीवादि पदार्थों को जानना यह अनुयोग श्रुत १२. अनुयोग समास श्रुत - उन्हीं अनुयोग व्दारों मे से अधिक २-४ व्दारों का ज्ञान अनुयोग समास श्रुत कहलाता है । १३. प्राभृत-प्राभृत श्रुत - दृष्टिवाद के अंदर प्राभृत-प्राभृत नामक अधिकार है, उनमें से किसी एक का ज्ञान प्राभृत-प्राभृत श्रुत है। १४. प्राभृत-प्राभृत समास श्रुत - उन्हीं अधिकारों में से दो-चार प्राभृत-प्राभृत अधिकारों का ज्यादा ज्ञान प्राभृत-प्राभृत समास श्रुत ज्ञान है। कर्म की गति नयारी (२०२)
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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