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________________ शास्त्रों में अभयकुमार की बद्धि की अत्यन्त प्रशंसा ही गई है। अभयकुमार मगध के अधिपति राजा श्रेणिक के पुत्र भी थे और राज्य के महामंत्री भी। बुद्धिनिधान थे। राज्य की विकट समस्याओं का मिनिटों में निराकरण करते थे। अभेद्य चक्रों को बुद्धि बल से भेदने में अभयकुमार का कुशलता एवं चातुर्य इतिहास प्रसिद्ध है। श्री विशेषावश्यक भाष्य में तथा नंदि सूत्रादि में चारों प्रकार की बुद्धि के विषय में भिन्न-भिन्न कथानक दिये हैं। (१) औत्पातिकी बुद्धि के विषय में रोहकुमार की कथा प्रसिद्ध है। मालव देश की उज्जयिनी नगरी में भरत नृत्यकार का पुत्र रोहकुमार बचपन से ही बुद्धि कुशल था। उज्जयिनी के राजा ने रोहक की बुद्धि की परीक्षा की। यह कितना चतुर है यह जानने के लिए भिन्न भिन्न जटिल कार्यों के प्रश्न रोहक के सामने रखे। रोहक को कहा कि-गांव के बाहर पड़ी शिला को उठाकर राज मंडप के योग्य छत्र बना दो। यह कार्य असंभव था। इतनी विशाल पत्थर की शिला को उठाकर मंडप के ऊपर छत्र के रूप में बनाना यह सभी को असंभव सा लगता था, परंतु रोहक ने बुद्धि चलाई । उसी शिला के चारों तरफ खंभे रहे इस तरह जमीन बीच से खुदवा दी। नीचे बैठने लायक मंडप बन गया। राजा इस कार्य को देखकर प्रसन्न हो गया। इस तरह भेड़ का वजन न बढ़े, मूर्गे को दूसरे मर्गे के बिना युद्ध कराना, रेती के कणों की रस्सी बनाना, तथा हाथी मरा है तो मरा भी नहीं कहना तथा जिन्दा है ऐसे शब्द प्रयोग भी नहीं करना और उसके समाचार देना। इस तरह के कई प्रश्न कुतुहल वश राजा ने उसकी बुद्धि की परीक्षा करने के लिए पूछे। परंतु स्वस्थता के साथ बिना घबड़ाए रोहकुमार ने आम जनता के बीच बड़ी आसानी से वे कार्य किये। जिससे राजा भी सिर खुजलाने लगा। रोहकुमार की बाल्यावस्था में इतनी प्रगल्भ बुद्धि की समस्त प्रजा ने खूब प्रशंसा की। अंत में राजा ने रोहकुमार को अपना मुख्य राज्य मंत्री बनाया। ___अकबर-बीरबल की बात सभी जानते ही हैं। हाजर जवाबी बीरबल समय का विलंब किये बिना शिघ्र ही अकबर के प्रश्न का उत्तर देता था । प्रजा चौंक उठती थी। नौं रत्नों में से यह एक रत्न था। इसी तरह वैनयिकी बुद्धि पर दो शिष्यों की कथा भी कही है। कार्मिकी बुद्धि पर एक किसान की बुद्धि की भी बात है, तथा परिणामिकी बुद्धि पर राजा के युवान मंत्री के विविध दृष्टान्त नंदि सूत्र में बताए गए हैं । यह मतिज्ञान के क्षयोपशम के आधार पर है। जातिस्मरण ज्ञान :जातिस्मरण यह भी एक ज्ञान है। परंतु इसका समावेश मतिज्ञान में ही कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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