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मनः पर्यवज्ञान केवलज्ञान
आभिनिबोधिक श्रुतज्ञान' अवधिज्ञान' ज्ञान (मतिज्ञान) *
विशेषावश्यक भाष्य में मतिज्ञान के लिए आभिनिबोधिक ज्ञान शब्द प्रयुक्त किया है । परंतु बात एक ही है । तत्त्वार्थधिगम सूत्र के एक सूत्र में पांचों नाम इस प्रकार गिनाए है "मति - श्रुतावधि - मनः पर्यवः केवलानि ज्ञानम्” (१) मतिज्ञान (२) श्रुतज्ञान (३) अवधिज्ञान (४) मनः पर्यवज्ञान और (५) केवलज्ञान ये पांच प्रकार के ज्ञान बताए गए है। इनका वर्णन संक्षेप में व्याख्यारूप से इस प्रकार है (१) मतिज्ञान - ( आभिनिबोधिक ज्ञान) - मतिः - स्मृतिः - संज्ञाचिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् ।। तत्त्वार्थाधिगम सूत्र के प्रथम अध्याय के १३ वें इस सूत्र में पूज्य वाचकमुख्यजी ने फरमाया है कि - प्रथम मतिज्ञान के ये भिन्न भिन्न पर्यायवाची शब्द है। मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता तथा आभिनिबोध ये पांचों नाम समानार्थक है। सभी का अर्थ एक ही है। केवल शब्द भेद है। मतिज्ञानावरण कर्म के क्षमोपशम से उत्पन्न होने के कारण भिन्न भिन्न नाम संज्ञा दी है, परंतु अर्थ भेद न होने से पर्यायवाची शब्द बताए गए हैं। मति को बुद्धि भी कहा है। अतः बौद्धिक ज्ञानबुद्धिपूर्वक ज्ञान को मतिज्ञान कहा जाता है। Intellectual Knowledge मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम होने पर इन्द्रिय और मन की सहायता से अर्थों का मनन मतिज्ञान कहलाता है।"मननंमतिः " यह भाव साधन है । आभिनिबोधिक के बारे में कहा है
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ज्ञान ↓
अत्थाभिमुो नियओ, बोहो जो सो मओ अभिनिबोहो । सो चेवाऽऽभिणिबोहियमहव जहाजोगमाउज्जं
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विशेषावश्यक भाष्य में कहा है कि पदार्थ - वस्तु के अभिमुख अर्थात् पदार्थ की उपस्थिति में उत्पन्न होनेवाला संशय रहित निश्चित बोध को आभिनिबोध कहते हैं। यही आभिनिबोधिक ज्ञान है। संशयादि रहित वस्तु के अभिमुख निश्चयात्मक ज्ञान को आभिनिबोधिक ज्ञान कहते हैं।
(२) श्रुतज्ञान
श्रवण ज्ञान को भी श्रुतज्ञान कहते हैं। श्रुतज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जन्य ज्ञान को श्रुतज्ञान कहा है। यह श्रुतज्ञान मतिपूर्वक होता है। शास्त्र श्रुतज्ञान के साधन उपकरण होने से शास्त्र को भी उपचार से श्रुतज्ञान कहते हैं। शास्त्र आगमादि ग्रन्थ है। शास्त्रोपदिष्ट श्रवणभूत ज्ञान श्रुतज्ञान है।
(३) अवधिज्ञान अवधि - क्षेत्रावधिः । निश्चित क्षेत्र की सीमा - अवधि
कर्म की गति नयारी
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