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किस कारण से कर्म बंध होता है ? प्रयोजन विशेष को यहां हेतु कहा है। ऐसे हेतु के रूप में मिथ्यात्वादि पांच को कर्म बंध के कारण रूप में बताए हैं। आश्रव क्रिया से तो बाहरी आकाश प्रदेश में रही हुई सिर्फ कार्मण वर्गणा का आत्मा में आगमन मात्र हुआ है। आकर्षण हुआ है। जैसे दूध में शक्कर डाली है। परंतु डालते ही घूल नहीं जाती है। थोड़ी देर हिलाने के बाद घूलती है। घूलने पर तो ऐसी घूल जाती है कि अब एक कण भी हाथ में नही आता । समस्त दूध में मिश्रित हो गई। एक रस हो गई। दूसरी क्रिया में देखें-लोहे का गोला भट्ठी में डालते ही लाल नहीं हो जाएगा। समय लगता है। अग्नि में थोड़ी देर तपेगा फिर लाल होगा। ठीक उसी तरह आश्रव मार्ग से कार्मण वर्गणा आती है, परंतु आते ही आत्म प्रदेशों के साथ मिलकर एक रस नहीं बन जाती । यह तो सिर्फ आश्रवण-आगमन- आकर्षण हुआ है। थाली में आटा लेते ही पिंड बन नहीं जाता है। पानी डालने के बाद उसे मिलाकर एक रस बनाकर मसलने से पिंड होता है। उसी तरह आश्रव मार्ग से आत्म प्रदेश में आए हुए कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणु मिथ्यात्व आदि हेतुओं से आत्म प्रदेशों के साथ मिल कर एक रस बनेंगे, तब बंध कहलाएगा ।
यद्यपि देखा जाय तो आश्रव मार्ग के भेदों में भी अविरति - कषाय और योगादि है तथा ये ही भेद बंध के अंदर भी गिने गए हैं। अविरति-कषाय और योग ये बंध के भी भेद हैं तो क्या समझना ? यदि ऐसी समानता है तो फिर दो भेद अलग क्यों किये गए हैं? प्रश्न सही है । सभी भेद दोनों में समान नहीं है । कुछ आंशिक साम्यता जरूर है। परंतु इससे भी ज्यादा क्रिया के स्वरूप में भेद हैं । आश्रव की क्रिया में सिर्फ बाहर से पुद्गल परमाणुओं का आकर्षण मात्र है, उनका आत्मा में आना मात्र है, और आने के बाद एक रस हो मिल जाना यह बंध है । शक्कर ही बाहर से दूध में आई और शक्कर ही दूध में मिलकर कण-कण के स्वरूप में लुप्त हो गई। दूध में पानी बाहर से आया और मिल गया। अग्नि में लोहे का गोला बाहर से आया और अग्निमय बनकर लाल बन गया । ठीक उसी तरह आश्रव के बाद बंध की क्रिया होती है। आश्रव की क्रिया से ही आए हुए कार्मण वर्गणा के पुद्गलों में मिथ्यादर्शनअविरति आदि का रस गिरता है। तब आत्मा के प्रदेशों के साथ मिलकर एक रस बन जाते हैं। क्षीर + नीरवत् - दूध - पानी की तरह मिलकर एक रस होना, या तप्तायः पिंडवत् - लोहे का गोला और अग्नि मिलकर जिस तरह एक स्वरूप हो जाते हैं उसी तरह कार्मण वर्गणा के पुद्गल जड़ परमाणु आत्मा के प्रदेश के साथ मिलकर एक रस बन जाते हैं । यह एक रासायनिक प्रक्रिया है।
मूर्त-अमूर्त का मेल कैसे ?
प्रश्न विचित्र खड़ा होता है कि - आत्मा और कर्म पुद्गल परमाणु एक कर्म की गति नयारी
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