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________________ लिखा है कि- "किरइ जीएण हेउहिं जेणं तो भन्नए कम्म' अर्थात् जीव के द्वारा हेतु पूर्वक जो क्रिया की जाय, या जो कुछ किया जाय वह कर्म कहा जाता है। इस सूत्र के अदर एक-एक शब्द का पूरा महत्त्व है। एक भी शब्द निकाल नहीं सकते। हेउहिं-हेतु शब्द पर ज्यादा भार दिया गया है। मात्र क्रिया कर्म नहीं है। परंतु हेतु पूर्वक की गई क्रिया कर्म है । क्रिया का कर्ता जीव है । कर्ता के बिना क्रिया हो नहीं सकती उसी तरह जीव के बिना कर्म नहीं हो सकते । अतः जीव ही कर्म का कर्ता है । कर्म क्रिया जन्य है । हेतु-आशय-भाव या अध्यबसाय के संदर्भ में है। क्रिया चाहे जैसी भी हो परंतु हेतु कैसा है? इस पर बड़ा आधार है। संभव है बाहर से क्रिया अच्छी नहीं भी दिखाई देगी। क्रिया का बाह्य स्वरूप अप्रिय भी होगा परंतु हेतुआशय अच्छा भी हो सकता है। उदाहरणार्थ मां बच्चे का बुखार उतारने के लिए कड़वी दवाई पिलाती है। आशय जानती है कि इससे बुखार जल्दी उतर जाएगा। बेटा अच्छा हो जाएगा, परंतु क्रिया का बाहरी स्वरूप अच्छा नहीं लगेगा। बेटा रोता है चिल्लाता है, और मां पकड़ कर जबरदस्ती से कड़वी दवाई पिलाती है। दूसरी एक क्रिया है। पेट फाडना। इस प्रकार की क्रिया के कर्ता दो प्रकार के होते हैं । एक तो सर्जन डॉक्टर और दूसरा खूनी, छूरा चलानेवाला अपराधी । छूरा चलाने वाला भी पेट पर छूरा चलाकर भाग जाता है। पेट पर चीरा पड़ जाता है, चमड़ी कट जाती है और खून बहने लगता है। दिखने में डॉक्टर की क्रिया भी इससे मिलती-जुलती है । सर्जन डॉक्टर भी पेट पर चाकू चलाता है। चमड़ी कटती है, खून बहता है, पेट फटता है। परंतु इस प्रकार की क्रिया करने वाले दोनों कर्ता का आशय भिन्न-भिन्न है। आशय-हेतु में रात-दिन का अंतर है। डॉक्टर का आशय मरते हुए को भी बचाने का है। जबकि खूनी का हेतु जिन्दे को भी मारने का है। अतः क्रिया में आशय-हेतु महत्व की भूमिका अदा करता है, तद्नुरूप कर्म बंध होता है । मरते हए को भी बचाने का कार्य करने वाले सर्जन डॉक्टर को शुभ पुण्य कर्म लगते हैं और बचे हुए या जिन्दे को मारने का पंचेन्द्रिय हत्या का पाप खूनी को लगता है । पाप अशुभ कर्म है । इस प्रकार कर्म क्रिया जन्य है। जीव के अध्यवसाय परिणाम पर आधारित है। इसीलिए कहा गया है कि - "क्रियाए कर्म-परिणामे बंध' क्रिया के आधार पर आत्मा में कार्मण पुदगल परमाणुओं का आगमन जरुर होता है, परंतु बंध तो जीव के परिणाम के आधार पर होगा। थाली में आटा तो लिया परंतु आटे का बंधन तो पानी के प्रमाण के अनुसार होगा। उसी तरह किसी भी प्रकार की क्रिया के अनुसार कार्मण वर्गणाएं आत्मा में आ जाएगी। यह आने की आश्रव क्रिया हुई, परंतु आश्रव के बाद जो बंध होता है वह बंध परिणाम के आधार पर होता है। जिस तरह आटे में पानीघी-तेल आदि डाला जाता है और उसके आधार पर आटे का पिंड होता है। उसी कर्म की गति नयारी (१३६)
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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