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________________ आवरण (आच्छादक) वाले ढक्कन की तरह आत्म गुणों को ढकने वाले कर्मों को आवरण कहते हैं। आवरण = अर्थात् ढकना। बाधक तत्त्व। आवरण यह संस्कृत शब्द है। ढक्कन यह हमारा चालु भाषा का शब्द है। अतः कर्मों ने क्या किया? कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं ने क्या किया? आत्म गुणों को ढक दिया-दबा दिया-छिपा दिया, यह ढकनादबाना-छिपाना आवरण क्रिया कहलाती है। आवरण की क्रिया अर्थात् आच्छादन करने वाले कर्म आवरणीय कर्म कहलाते हैं। कर्मों के नाम अलग से नहीं कहलाते हैं। कर्मो के अपने स्वतंत्र नाम नहीं पड़े हैं। आत्मा के जिस गुण को कर्म ढकते हैं। उस गुण के आवरणीय वे कर्म कहलाएंगे। जैसे जन्मे हुए जातक का नाम उस राशी और नक्षत्र के चरणानुसार पड़ते हैं। वैसे ही कर्मों के नाम आत्मा के गुणों को ढकने वाले आवरक के रूप में पड़ते हैं। आत्मा के गुण भिन्न-भिन्न है अतः कर्मों के नाम भी भिन्न-भिन्न पड़ेंगे। आत्मा के गुण ८ है इसलिए कर्म भी ८ है। " आत्म गुण आवरक कर्मों के नाम (१) अनंत ज्ञान गुण (२) अनंत दर्शन गुण - दर्शनावरणीय कर्म (३) अनंत चारित्र गुण - मोहनीय (चारित्रावरणीय) कर्म (४) अनंत वीर्य गुण - अंतराय कर्म (५) अनामी-अरूपी गुण - नाम कर्म (६) अगुरुलघु गुण - गोत्र कर्म - (७) अनंत (अव्याबाध) सुख गुण - वेदनीय कर्म (८) अक्षय स्थिती गुण . - आयुष्य कर्म (१२७ कर्म की गति नयारी - ज्ञानावरणीय कर्म
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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