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________________ सच्छिद्र नाव में जल प्रवेश (१) स्पर्शेन्द्रिय (२) रसनेन्द्रिय (३) घ्राणेन्द्रिय (४) चक्षुइन्द्रिय चमड़ी जीभ नाक आंख कान - १ इन्द्रियाश्रव आदि पांचों प्रवेश द्वारों से कार्मण वर्गणा का आश्रव आत्मा में हो रहा है । सोचिए, चेतन आत्मा में जड - पुद्गल परमाणुओं को आश्रव से आत्मा पर भार बढ़ता ही जाएगा। पुद्गल पदार्थ में तो वजन रहता ही है। जबकि आत्मा तो वजन रहित अगुरुलघु गुणवाली है परंतु कार्मण वर्गणा के भार से आत्मा भारी होकर नौका की तरह डूबती जाएगी । इन्द्रियाश्रव आदि पांच प्रकार के आश्रव द्वार की प्रवृत्ति कर रही आत्मा कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं को अंदर खिंचती है। (१) इन्द्रियाश्रव में इन्द्रियों की प्रवृत्ति के द्वारा आश्रव होता है । इन्द्रियां पांच है । ८ स्पर्श विषय रस विषय गन्ध विषय वर्ण विषय आम्रव-भावना - २ अवृत प्रमाद - कषाय ५ योग (५) श्रवणेन्द्रिय पांच इन्द्रियों के ध्वनि विषय कुल- विषय २३ संसार में सभी जीव सशरीरी है और शरीर है तो इन्द्रियां अवश्य है जो सभी को समान नहीं मिलती कम-ज्यादा मिलती है। किसी को १ किसी को २,३,४ और ५. अतः जीवों में एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तीनइन्द्रिय, चारइन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय के भेद है। इन्द्रियों के माध्यम से शरीरस्थ जीव उन उन विषयों को ग्रहण करता है। स्पर्शेन्द्रिय से ८ प्रकार के स्पर्श का ही ग्रहण होगा । उससे आत्मा को स्पर्शानुभव ज्ञान होता है। कर्म की गति नयारी १२२ -
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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