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________________ दसवां अध्ययन : पंचम अपरिग्रह-संवर ८३१ (चित्तकम्मे) चित्रकर्मसम्बन्धी (लेप्पकम्मे) मिट्टी आदि से दीवार आदि पर लेपनकर्मसम्बन्धी, (य) तथा (सेले) पत्थरसम्बन्धी, (य) (दंतकम्मे) हाथीदांत आदि के कर्मसम्बन्धी (पंचहि) पांचों (वण्णेहि) रगों से युक्त (मणुन्नभद्दकाई) मनोज्ञ तथा आंखों को प्रिय (सचित्ताचित्तमोसकाई) सचित्त, अचित्त और मिश्र (रूवाणि) रूपों को (पासिय) देख कर (अणेगसंठाणसंठियाई) अनेक संस्थानआकार के रचे हुए, (गंठिम-वेढिम-पूरिम-संघातिमाणि) गूंथे हुए, वेढ़ कर कसीदा निकाले हुए, पिरोए हुए, माला की तरह इकठे जोड़े हुए (अहियं) अधिक (नयणमणसुहकराई) आंखों और मन को सुख देने वाले (बहुविहाणि) अनेक प्रकार के (मल्लाइ) मालाओं में लगाये हुए फूलों को तथा (वणसंडे) वनखण्ड, (पव्वते) पर्वत, (गामागरनगराणि) गांव,खान एवं नगर, (य) तथा (फुल्लुप्पलपउम-परिमंडियाभिरामे) खिले हुए नील कमलों और श्वेत कमलों से सुशोभित और नयनाभिराम, (अणेगसउणिगणमिहुणविचरिए) जिनमें अनेक हंस, सारस आदि पक्षियों के जोड़े विचरण कर रहे हैं, ऐसे (खुद्दिय-पुक्खरिणी-वावी-दीहिय-गुजालिय-सरसरपंतिय-सागर-बिलपंतियखादिय-नदी-सर-तलाव-वप्पिणी) छोटा जलाशय, कमलयुक्त गोल बावड़ी, लम्बी बावड़ी, टेढ़ीमेढ़ी नहर, खोये हुए या बिना खोदे सरोवरों को पंक्ति, समुद्र, सोना चाँदी आदि धातु की खान का मार्ग, खाई, नदी, स्वाभाविक सरोवर, कृत्रिम तालाब, क्यारियों से शोभायमान बगीची को, (य) तथा (सोमपडिरूवदरिसणिज्जे) सौम्य, सुन्बर और दर्शनीय (अलंकितविभूसिते) मुकुट आदि से अलंकृत तथा वस्त्रादि से सुसज्जित, (पुवकयतवप्पभाव-सोहग्गसंपउत्त) पूर्वकृत-तपस्या के प्रभाव से प्राप्त सौभाग्य से युक्त (वरमंडवविविहभवणतोरणचेतियदेवकुलसभप्पवावसह-सुकयसयणासण-सीय-रह-सयड-जाण-जुग्ग-संदण-नरनारिगणे) उत्तम मंडप, अनेक प्रकार के भवन, तोरण, चैत्य-यक्षादि की प्रतिमा, देवीदेवों के मन्दिर, सभा, प्याऊ, संन्यासियों के मठ, सुरचित शयन एबं आसन, पालकी, रथ, गाड़ी, यान, टमटम वाहनविशेष, रथविशेष तथा नर-नारियों के झुण्ड को, (य) तथा (नड-नट्टक-जल्ल-मल्ल-मुठ्ठिय-वेलंबककहग-पवग-लासग-आइक्खग-लंख-मंख-तूणइल्ल-तुबवीणिय-तालायर--पकरणाणि) नट, नृत्य करने वाले, बाजा बजाने वाले, पहलवान, मुष्टिमल्ल-मुक्केबाज, भांड-विदूषक, कथाकार, तैराक, रास करने वाले, शुभाशुभ फल बताने वाले, बांस पर चढ़ कर खेल करने वाले, चित्रपट दिखाने वाले, तूण (तुनतुनी) नामक बाजा बजाने वाले, तुम्बी की वीणा बजाने वाले, तालमजीरे बजाने वाले व्यक्तियों के कार्योंआश्चर्यजनक करतबों को तथा (बहुणि सुकरणाणि) बहुत-सी सुन्दर-सुन्दर क्रियाओं
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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