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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र पीड़ा होती है, उन पर सीधी चोट लगती है, इसलिए इसे 'परितापाश्रव' यथार्थ ही कहा है। ४० २७ - विनाश - प्राणियों का इसमें द्रव्य और भाव दोनों ही तरह से नाश होता है, इसलिए इसे विनाश कहा है । द्रव्य से विनाश तो प्राणों या शरीरादि का होता है, भाव से मरते समय मरने वाले जीव में प्राय: आर्त्तध्यान एवं मारने वाले के प्रति रौद्रध्यान पैदा होता है, साथ ही मारने वाले के मन में भी क्रूर भाव पैदा होते हैं, इसलिए द्रव्य और भाव से स्वपर विनाश का कारण होने से प्राणिवध को 'विनाश' भी कहा है । २८ - निर्यापना अथवा नियातना - जीवन-यापन से रहित कर देना निर्यापना है । जब प्राणों को निकाल दिया जाता है, तो प्राणी अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठता है, वह फिर अधिक देर तक अपना जीवन नहीं बिता सकता । अथवा जीवनयापन का अर्थ सुख से चल रही जीविका से रहित कर देना, किसी की जीविका को उखाड़ देना भी हो सकता है । किसी की जीविका का उच्छेद ( वृत्तिच्छेद ) कर देना भी उसके प्राण लेने के समान भयंकर दुःखदायी होता है । इसलिए इन दोनों दृष्टियों से निर्यापना हिंसा की कारण होने से हिंसा की ही बहिन है । अथवा इसका एकरूप नियातना होता है - जिसका अर्थ होता है, जिसमें नितरां - निरंतर यातना ही यातना हो । हिंसा के कारण हिंसक प्राणी को सतत यातना का ही अनुभव होता है । इसलिए नियातना भी हिंसा की कारण होने से इसकी समानार्थक है । इसी प्रकार कहीं-कहीं इसका संस्कृत रूपान्तर 'निर्यतना' भी होता है, जिसका अर्थ है - कर्म में किसी प्रकार की भी यतना - सावधानी - अप्रमत्तता नहीं रहती, सर्वथा निकल जाती है। हिंसा में किसी प्रकार की यतना तो रहती ही नहीं, पर मन, शरीर, वाणी, इन्द्रिय आदि किसी भी अंग पर संयम या नियंत्रण भी हिंसा करते समय नहीं रहता । इसलिए हिंसा को एक नाम 'निर्यतना' भी है । इसका एक पाठान्तर मिलता है - 'निज्झवणो' जिसका अर्थ है — निर्ध्यापन करना — यानी धर्मध्यान, शुक्लध्यान रूप शुभ ध्यानों को छुड़ाने वाला । प्राणिवध करने वाले का ध्यान हमेशा आर्त और रौद्र रहता है, धर्मध्यान तो उसके पास भी नहीं फटकता । यह भी प्राणिवध के कारण होता है, इसलिए 'निर्ध्यापन' भी इसके समकक्ष है । २६ - लोपना - जिसमें प्राणों का लोप ( खात्मा) कर दिया जाता हो, वह लोपना है । अथवा प्राणों की लुम्पना - लूट करने वाली होने से यह लोपना है । प्राणिवध में भी प्राणों का लोप किया जाता है, इसलिए लोपना भी प्राणिवध की सगी बहन है । ३० - विराधना - आत्मा के ज्ञानादि गुणों की इसमें विराधना होती है— क्षति होती है, इसलिए विराधना भी आत्म-भाव की हिंसा का ही काम करती है ।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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