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________________ ७६० . श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र पिट्ठी, मूंग आदि की दाल, पूड़ी या तिल पपड़ी, बेढ़मी नामक चोकोर रोटी या मिस्सी रोटी, शक्कर के रस से भरे हुए गुलाब-जामुन, रसगुल्ला आदि, जिनके अन्दर बेसन आदि भरा जाता है, ऐसे कचौरी, समोसे आदि पदार्थ, गुड़ आदि का पिंड, शक्कर मिला हुआ दही-श्रीखंड, दाल के बड़े, लड्डू, खीर, दही, घी, मक्खन, तेल, गुड, खांड़, मिश्री, शहद, मद्य, मांस, खाजे, अनेक प्रकार के साग, चटनी, रायता, अचार आदि व्यंजन तथा स्वादिष्ट पौष्टिक पदार्थ; विधिपूर्वक बढ़िया तरीके से बनाए हुए कुछ भोज्य पदार्थ उचित होने से ग्राह्य हैं; तथापि उपाश्रय-स्थानक में या दूसरे मकान में अथवा जंगल में शास्त्रविहित आचरण करने वाले साधुओं को इन्हें अपने पास संग्रह करके रखना उचित नहीं है। इसके अतिरिक्त जो आहार साधु को उद्देश्य करके बनाया गया है, साधु के लिए ही अलग से रखा गया है, मोदक के चूरे से लड्डू बांधकर साधु के लिए तैयार किया गया है, उद्दिष्ट भोजन या भात आदि एक चीज को दही आदि दूसरी चीज के साथ मिलाकर रूपान्तर किया हुआ, भूमि पर बिखरता हुआ, दीपक जलाकर दिया जाने वाला, उधार लेकर तैयार किया गया, साधु और गृहस्थ दोनों के लिए संयुक्त रूप में तैयार किया गया, साधु के निमित्त खरीदा गया, साधु को भेंट के रूप में दिया जाने वाला अथवा दान के लिए, पुण्य के लिए बनाया गया, अथवा बौद्ध आदि श्रमणों तथा याचकों के लिए बनाया गया भोजन तथा जिस आहार के देने के बाद सचित्त पानी से हाथ या बर्तन धोने पड़ें, या दान देने के पूर्व हाथ आदि सचित्त पानी से धोने पडें, जो आहार नित्य एक ही घर से लिया जाता हो, सचित्त पानी आदि के संसर्ग से युक्त भोजन, सात्रा से अधिक भोजन, आहार लेने के पूर्व या पश्चात् दाता की प्रसंसा करके या बहुत कहासुनो करके प्राप्त किया गया आहार, मिट्टी तथा गोबर आदि से लिप्त हाथों से दिया गया आहार, तथा नौकर आदि दुर्बल से छीनकर दिया गया आहार, एक व्यक्ति द्वारा अनेक व्यक्तियों के अधिकार का दिया जाने वाला आहार, तथा मदनत्रयोदशी आदि तिथियों में, यज्ञों में, उत्सवों में खुशियों के मौकों पर या यात्राओं में-मेलों ठेलों में उपाश्रय के अंदर या कहीं बाहर साधु के लिए रखा गया हिंसा तथा सावद्य कर्मों से युक्त आहारादि हो, उसे भी ग्रहण करना साधु के लिए वर्जनीय है। . प्रश्न होता है, तो फिर कौन-सा आहारादि पदार्थ साधु को लेना
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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