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दसवां अध्ययन : पंचम अपरिग्रह-संवर
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द्वितीय श्रुत स्कन्ध के पिंडैषणा नामक प्रथम अध्ययन के ग्यारह उद्देशों में वर्णित दोषों से रहित-शुद्ध हो, (किणण-हणण-पयण-कय-कारियाणुमोयणनवकोडीहिं सुपरिसुद्ध) मूल्यादि से खरीदना, शस्त्रादि से छेदन द्वारा प्राणिहिंसा से उत्पन्न करना, अग्नि से पकाना, इन तीनों कार्यों का करना, कराना और अनुमोदन करना, इस प्रकार : कोटियों से रहित-विशुद्ध हो, (य) तथा (दसहि दोसेहि विप्पमुक्कं) शंकित आदि दस दोषों से रहित हो, (उग्गमउप्पायणेसणाए सुद्ध) आधाकर्म आदि १६ उद्गम के, धात्री आदि १६ उत्पादना के दोषों से, आहारादि को गवेषणा से शुद्ध हो (च) तथा (ववगयचयचाविय-चत्तदेहे) चेतनपर्याय से अचेतनत्व को प्राप्त आयुक्षय होने के कारण जीवनादि क्रिया से रहित किया गया, स्वयं जीवों के द्वारा छोड़ दिया गया, (फासुयं) प्रासुक आहार तथा (ववगयसंजोगं, विगयधूम) संयोजना के दोष से रहित, धूम दोष से रहित आहार (छहाणनिमित्तं) क्षुधावेदनानिवृत्ति व वैयावृत्य आदि के छह निमित्त से (छक्कायपरिरक्खणट्ठा) छह काय के जीवों की रक्षा के लिए साधु को (हणिहणि) प्रतिदिन (फासुकेण भिक्खेण वट्टियव्वं) प्रासुक भिक्षान्न पर निर्वाह करना चाहिए । (जं पिय) और जो (सुविहियस्स समणस्स) शास्त्रविहित आचरण करने वाले साधु के, (बहुप्पकारम्मि रोगायके) बहुत प्रकार के अत्यन्त कष्टप्रद रोग के उत्पन्न होने पर(वाताहिकपिसिभअतिरित्तकुविय,तहसन्निपातजाते)वायु को अधिकता से, पित्त तथा कफ के अत्यन्त कुपित हो जाने से तथा वात-पित्त-कफ तीनों के संयोग से उत्पन्न सन्निपातजन्य रोग के (समुप्पन्ने) उत्पन्न हो जाने पर (व) अथवा (असुभकडुयफरुसे चंडफलविवागे) अशुभ, कटुक और कठोर प्रचंड-भयंकर फलभोगरूप विपाक वाले (उज्जल-बल-विउल-कक्खङ-पगाढ-दुक्खे) सुख के लेश से रहित, प्रबल, चिरकाल तक वेदन किये जाने वाले, अतएव कर्कश द्रव्य की तरह चुभने वाले प्रगाढ दुःख के (उदय पत्ते) उदय में आने पर (जीवियंतकरणे) जीवन का अन्त करने वाले (सव्वसरीरपरितावणकरे) सारे शरीर में सन्ताप उत्पन्न करने वाले (तारिसे महन्भए अवि) ऐसे महान् भय के उपस्थित होने पर भी (तह) तथा (अप्पणो परस्स वा) अपने या दूसरे के लिए (ओसहभेसज्ज) औषध और भैषज (च) और (भत्तपाणं) भोजनपान (तंपि) वह भी साधु को (सन्निहि-कयं) अपने पास संग्रह करके रखना (न कप्पइ) योग्य नहीं है। (जंपिय) और जो कि (सुविहियस्स पडिग्गहधारिस्स समणस्स) शास्त्रविहित आचरण करने वाले पात्रधारी श्रमण के (भायणभंडोवहिउवकरणं) काठ के पात्र, मिट्टी के पात्र-बर्तन, रजोहरण आदि उपकरण जैसे कि-(पडिग्गहो) पात्र, (पादबंधनं) पात्र बांधने की झोली, (पादकेसरिया) पात्रकेसरी - पात्र प्रमार्जनी